Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य
१७२
शेष
श्लोकार्थ – अहमिन्द्र की देव आयु में से छह माह प्रमाण मात्र आयु रहने पर वह देन सम्पर्ण सिद्ध भगवन्तों का ध्यान कर उनकी पूजा में दत्तचित्त हो गया।
अन्वयार्थ
तदा जंबूमहाद्वीपे भरतक्षेत्रे
उत्तमे ।
शुभे देशे शुभपुरी कौशाम्बी नामतः स्मृता ।। २२ ।। यमुनापूर सन्दीप्ता धर्मविन्मानवगणैः
धनधान्यसमाकुला । सर्वत्राकृतमङ्गला ।। २३ ।।
तदा = तब या उस समय जंबूमहाद्वीपे महान् जम्बूद्वीप = शुभ, में, उत्तमे = उत्तम, भरतक्षेत्रे भरतक्षेत्र में, शुभे देशे = देश में, धर्मविन्मानवगणैः धर्म को जानने वाले जन समुदाय से सर्वत्रकृतमङ्गला = सर्वत्र मङ्गल की जाती हुयी, धनधान्यसमाकुला = धनधान्य से भरपूर, ( च = और), यमुनापूरसन्दीप्ता = यमुना नदी के पूर से सन्दीप्त, शुभपुरी = सुन्दर नगरी, नामतः = नाम से कौशाम्बी कौशाम्बी, स्मृता = स्मृत की गयी है।
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श्लोकार्थ
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उस समय जम्बूद्वीप के उत्तम भरत क्षेत्र में शुभ देश में एक सुन्दर नगरी थी जो यमुना नदी के पूर अर्थात् जलभाग से सुशोभित थी, धनधान्य से परिपूर्ण थी तथा धर्म के ज्ञाता जनों के समूहों द्वारा मङ्गल स्वरूप वाली थी। विद्वानों ने उसे कौशाम्बी नाम से स्मरण रखा है।
तत्रेक्ष्वाकुकुले गोत्रे काश्यपे धरणाभिधः । 'राजा बभूव धर्मज्ञो महाबलपराक्रमः ।।२४।।
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= धरण
अन्वयार्थ – तत्र = उस कौशाम्बी नगर में, इक्ष्वाकुकुले = इक्ष्वाकु वंश में, काश्यये = काश्यप गोत्रे = गोत्र में, धरणाभिधः नामक, महाबल पराक्रमः = महान् बल और पराक्रम का धारी, धर्मज्ञः : = धर्मात्मा, राजा = राजा, बभूव हुआ । श्लोकार्थ – उस कौशाम्बी नगर में इक्ष्वाकुवंश में काश्यप गोत्र में एक धरण नाम का महा पराक्रमी बलशाली और धर्मात्मा राजा हुआ करता था ।
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