Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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षष्ठः
अपनी,
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सम्पूर्ण देवताओं के सार्धं = साथ, स्वाम् अमरावतीम् = अमरावती को जगाम = चला गया। श्लोकार्थ – मायाशक्ति से जैसे माता को ज्ञात न हो वैसे शची के हाथ से देव प्रभु को पाकर वह सौधर्म इन्द्र जय जयकार का निर्घोष करता हुआ मेरू पर्वत पर गया। वहाँ उसने क्षीर सागर के जल से भरे हुये एक हजार आठ स्वर्णकलशों से प्रभु का हवन किया और भक्ति के साथ उनकी अर्चना की। फिर प्रभु को दिव्य वस्त्रों और अलङ्करणों से सुशोभित करके वह पुनः उन्हें राजा के महल में ले आया । वहाँ सिंहपीठ पर विराजमान किये गये उन प्रभु की फिर से पूजा करके, राजा आदि सभी के अन्तर्मन को वशीभूत करने वाला आश्चर्यकारी तांडव नृत्य करके, प्रभु का 'पद्मप्रभु' यह नामकरण करके और प्रभु को माता के लिये देकर वह इन्द्र सभी देवताओं के साथ अपनी अमरावती को चला गया।
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देवीदेवकुमारकैः ।
सर्वाङ्गानुपमो देवो सेवितो बालरूपेण चिक्रीड नवसद्मनि । ४५ ।। अन्वयार्थ - देवीदेवकुमारकैः देवियों और देव कुमारों द्वारा सेवित होता हुआ, सर्वाङ्गानुपमः सभी अङ्गों से अनुपम, देवः = बालक प्रभु, नवसद्मनि = नये महल में, बालरूपेण = बालरूप से, चिक्रीड = खेलते थे ।
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श्लोकार्थ - देव और देवियों के कुमार रूप से सेवित होता हुआ सारे अङ्गोपाङ्गों से सर्वाति सुन्दर बालक प्रभु अपने नूतन महल में बालोचित क्रीड़ायें करते थे।
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नवकोटिसमुद्रेषु सुमतीशाद् गतेषु सः । तदभ्यन्तरजीवी हि बभूवाद्भुतरूक्तनुः ||४६ ||
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अन्वयार्थ सुमतीशात् सुमतिनाथ तीर्थङ्कर से नवकोटिसमुद्रेषु = नौ करोड़ सागर, गतेषु बीत जाने पर, तदभ्यन्तरजीवी = उसके मध्य में ही अन्तर्भूत जीवन वाले, अद्भुतरूक्तनुः आश्चर्यकारी ज्योतिर्मय शरीर वाले, सः वह पद्मप्रभु भगवान् बभूव = हुये थे ।
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