Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
षष्ठः
एवं देव्या लया मासा नीता नव सुखेन हि । देवज्योतिदैदीप्यमानया ||३७||
स्वभावदीप्तया
अन्वयार्थ - एवं
श्लोक
= इस प्रकार सुखेन = स्वभावदीप्तया = स्वभावतः कान्ति वाली, च = और), देवज्योतिदैदीप्यमानया = देव के प्रकाश से दैदीप्यमान कान्तिवाली, तया उस देव्या - रानी ने, नव = नौ, मासाः = महिनें, सुखेन सुख से, हि = ही, नीता = बिता दिये।
इस
में सुन्दर व कान्तिसम्पन्न तथा गर्भ में देव के जीव की स्थिति होने से उसके प्रकाश से अत्यधिक दमकती सी उस रानी ने नौ महिने सुख से ही बिता दिये। कार्तिके मासि कृष्णायां त्रयोदश्यां शुभे दिने । श्रीमदहमिन्द्रमहेश्वरम् ||३८||
=
=
=
=
"
असूत पुत्रं पुत्रं सा अन्वयार्थ कार्तिके कार्तिक, मासि मास में कृष्णायां = कृष्ण पक्ष में. त्रयोदश्यां = त्रयोदशी तिथि में शुभे शुभ दिने दिन में सा= उस रानी ने श्रीमत् लक्ष्मीसम्पन्न, अहमिन्द्रमहेश्वरं = अहमिन्द्र से तीर्थङ्कर होने वाले पुत्रं पुत्र को. असूत = जन्म दिया | श्लोकार्थ- कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के शुभ दिन उस रानी ने अहमिन्द्र से तीर्थङ्कर होने वाले पुत्र को उत्पन्न किया । तथैवावधितो ज्ञात्वा सौधर्मन्द्रोऽथ हर्षितः । ऐशानेन्द्रसमायुक्तः सगीर्वाणः समाययौ ।। ३६ ।। अन्ययार्थ - अथ = फिर, तथैव वैसा ही अवधितः अवधिज्ञान से, ज्ञात्वा = जानकर, सौधर्मेन्द्रः - सौधर्म स्वर्ग का इन्द्र, हर्षितः = हर्षित हुआ, ऐशानेन्द्रसमायुक्तः = ऐशान स्वर्ग के इन्द्र के साथ, सगीर्वाणः = देवताओं सहित, समाययौ = आया !
=
=
=
१७७
=
=
श्लोकार्थ – फिर वैसे ही प्रभु का जन्म अवधिज्ञान से जानकर हर्षित चित्त सौधर्म इन्द्र ऐशान स्वर्ग के इन्द्र के साथ होकर देवताओं सहित वहाँ आया।