Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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वष्ठः
११ राज्यभोगैः = राज्य के भोर्गों को भोगने के साथ, सानन्दं = आनन्द सहित, राज्यं = राज्य, अकरोत् = किया। एकस्मिन समये = एक बार, प्रभुः = राजा, बनक्रीडार्थम् = वन में क्रीड़ा
के लिये, गतवान् = गये।। श्लोकार्थ – सबके लिये सुख देने वाले, सभी प्रकार के दोषों को दूर करने
वाले. धर्मकार्यसम्पादन में चतुर सारे विकारों को जीतने वाले उस प्रतापी राजा ने अनेक प्रकार से राज्य के वैमव को भोगने के साथ आनन्दपूर्वक राज्य किया। एक बार वह राजा वन
क्रीड़ा के लिये वन में गये। तत्र गत्यैकमासं तं मृतं मातङ्गमैक्षत | तत्क्षणात्स विरक्तोऽभूत् नश्वरं गणयजगत् ।।१।। अनुप्रेक्षा द्वादशैव भावयित्वा हृदि प्रभुः । दत्त्या राज्यं स्वपुत्राय स्तुतो ब्रह्मर्षिभिस्तदा ।।५।। शकोपनीलामसुलामानन्दशिक्षिका गतः ।
शृण्वन् देवजयध्वनि मनोहरवनं ययौ ।।५३।। अन्वयार्थ – (स = उसने). एकमासं = एक माह पर्यन्त. (अक्रीडत् = क्रीडा
की), (च = और), तत्र = वन में, मातङ्ग = हाथी को, ऐक्षत = देखा, तं = उसको. मृतं = मरा हुआ, गत्वा = जानकर, तत्क्षणात् = उसी क्षण, स - वह, जगत् = जगत् को. नश्वरं = नश्वर, गणयन - गिनता हआ, विरक्तः = विरक्त, अभूत = हो गया। प्रभुः = राजा ने. हृदि = मन में, द्वादशैव = बारहों ही, अनुप्रेक्षाः = अनुप्रेक्षायें, भावयित्वा = 'माकर,' स्वपुत्राय = अपने पुत्र के लिये, राज्यं = राज्य को. दत्वा = देकर, (यदा -- जब), ब्रह्मर्षिभिः = ब्रह्मर्षि अर्थात् लौकान्तिक देवों से, स्तुतः = स्तुति किया गया, तदा = तब, शक्रोपनीता = इन्द्र द्वारा लायी गयी, अतुलां = जिसकी तुलना नहीं की जा सकती ऐसी अनुपम, आनन्दशिविकां = आनन्द नामक पालकी को, गतः = प्राप्त हो गया, देवजयध्वनि = देवताओं द्वारा की गई जयध्वनि को, शृण्वन् = सुनता हुआ, मनोहरवनं = मनोहर बन को, यय) = चला गया।