Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पञ्चमः
अन्वयार्थ - (सः = उस राजा नै), वैशाखे - बैसाख माह में, शुक्ल दशमीमघानक्षत्रवासरे शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन मघा नक्षत्र होने पर, सहस्रभूमिपैः एक हजार राजाओं के, सार्धं = साथ. तापसीम् = तपश्चरण प्रधान, दीक्षां = दीक्षा ग्रहण कर लिया ।
को
जग्राह =
श्लोकार्थ – फिर उस राजा ने वैसाख शुक्ला दशमी के दिन मघानक्षत्र में एक हजार राजाओं के साथ तपस्या की प्रधानता वालो मुनि दीक्षा को ग्रहण कर लिया ।
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दीक्षानन्तरमेवास्य
तुर्यज्ञानमभूदनि
द्वितीये
इन
गतः पुरे सौमनसे पद्माख्यस्तत्र भूपतिः । आहारं दत्तवांस्तस्मै सम्प्राप्तश्चाश्चर्यपंचकम् । । ५५ ।। अन्वयार्थ - दीक्षानन्तरम् दीक्षा लेने के बाद एव ही अस्य = मुनिराज के मनोवार्ता प्रबोधकम् = मन की बात को बताने वाला, तुर्यज्ञानं - चौथा मन:पर्ययज्ञान, अभूत् = हो गया. द्वितीये दूसरे अहिन दिन, भैक्ष्यमाचरन् = भिक्षा पाने का आचरण करते हुये अर्थात् आहार हेतु चर्या का पालन करते हुये (सः वह मुनिराज ) सौमनसे सौमनस नामक, पुरे = नगर में, गतः = गये, तत्र = वहाँ, पद्माख्यः = पद्म नामक, भूपतिः = राजा ने, तस्मै = उन मुनिराज के लिये आहारं = भोजन दत्तवान् दिया. च और आश्चर्यपंचकम् = पाँच आश्चर्यों को सम्प्राप्तः
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मनोवार्ताप्रबोधकम् |
भैक्ष्यमाचरत् । । ५४ ।।
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प्राप्त हुआ ।
श्लोकार्थ दीक्षा ले लेने के बाद ही मुनिराज के मनोगत बात को जानने याला मन:पर्ययज्ञान हो गया। दूसरे दिन मुनिराज भैक्ष्य चर्या अर्थात् आहार हेतु चर्या का पालन करते हुये सौमनसपुर में पहुँच गये । वहाँ पद्म नामक राजा ने उनके लिये आहार दान दिया तथा पंचाश्चर्य प्राप्त किये।
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कृत्वा सामायिकं भौनमास्थितश्च तपोवने ।
सेहे परीषहान् सर्वान्धैर्यमालम्ब्य केवलम् ||५६ ।।