Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य
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अन्वयार्थ अयं = यह, तपोनिधिः = तपश्चरण से स्वर्ग की निधि पाने वाला, अणिमाद्यष्टसिद्धीनां अणिमादि आठ सिद्धियों ऋद्धियों
का, ईश्वरः - स्वामी होता हुआ, तपोबलात्
- तप के बल
से, अहमिन्द्र - सुखास्वादी = अहमिन्द्र के योग्य सुख का आस्वादी होता हुआ, तत्र वहीं प्रथम ग्रैवेयक में अतिष्ठत् = रहता था । सर्वायुष्ये = सारी आयु में अतिष्ठत् = रहता था, सर्वायुष्ये सारी आयु में, षट्सु छह, मासेषु अवशिष्टेषु = शेष रहने पर तत्र = वहाँ, (सः = उसने), पुनः
= = = माह,
फिर से, भूम्यवताराय = पृथ्वी पर अवतार लेने अर्थात् उत्तर कर जन्म लेने के लिये समयः समय, अन्तिकम् = अन्त को, आगतः = प्राप्त हो गया है, (इति = ऐसा, ज्ञातवान् जान लिया ) ।
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श्लोकार्थ तपश्चरण से स्वर्ग में अहमिन्द्र पद की निधि प्राप्त करने वाला यह तपोनिधि अणिमादि आठ ऋद्धियों का स्वामी होता हुआ तपश्चरण बल से ही अहमिन्द्र पद के योग्य सुख का आस्वाद लेता हुआ वहाँ रहता था। उसने भुज्यमान आयु में छह माह शेष रहने पर यह जान लिया कि अब फिर से भूमि पर जन्म लेकर अवतरित होने के लिये अन्तिम समय आ गया है। जम्बूद्वीपोदितक्षेत्रे भारते विषयो महान् । अभार इति विख्यातः पवित्रो धर्मकृद्धितः ||१४||
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अन्वयार्थ जम्बूद्वीपोदितक्षेत्रे = जम्बूद्वीप में कहे गये क्षेत्र में भारते = भरत क्षेत्र में, अभारः = अभार, इति = इस, नाम्ना = नाम से. विख्यातः = प्रसिद्ध धर्मकृद्धित्तः धर्म करने वालों के हित रूप, पवित्रः पवित्र, महान् = विशाल, विषय: देश. (आसीत्
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था) 1
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श्लोकार्थ जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में 'अभार इस नाम से प्रसिद्ध एक विशाल देश था जो धर्म करने वालों को अनुकूल हित स्वरूप एवं पवित्र था ।