Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्लोकार्थ
गत्वा
दीक्षां
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श्लोकार्थ
अन्वयार्थ - (बने = वन में), विमलवाहस्य स्वामिनः = मुनिराज विमलवाहन की, पादसन्निधौ = चरणसन्निधि में, गत्वा = जाकर, तपसे = तपश्चरण के लिये, कृतनिश्चयः = निश्चय कर लेने वाले, राजा = राजा ने, दीक्षां = दीक्षा को समग्रहीत् = ग्रहण कर लिया ।
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य
वैराग्य होने पर तभी वह अत्यंत विवेकशील राजा धनपाल नामक अपने पुत्र को राज्य देकर स्वयं ही वन में चला गया। विमलवाहस्य स्वामिनः पादसन्निधौ ।
समग्रहीदाजा तपसे कृतनिश्चयः ।।७।।
वन में मुनिराज दिवाहन की ऋण सन्निधि में जाकर तपश्चरण करने के लिये दृढ़ निश्चयी उस राजा ने मुनि दीक्षा ग्रहण कर ली।
मुनिश्चैकादशाङ्गानि
तद्वत्षोडशभावनाः ।
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भावं कृत्वा च सन्धार्य रराज 'धुमणिर्यथा ||८|| अन्वयार्थ – च = और, मुनिः वे मुनिराज एकादश = ग्यारह, अङ्गानि अङ्गों को, सन्धार्य धारण करके, षोडशगावनाः सोलह भावनाओं को, तद्वत् = अङ्गों को धारण करने के समान, (अवबुध्य = जानकर ), ( तासां = उन भावनाओं की), भावं कृत्वा = भावना करके (तथैव वैसे ही), रराज = सुशोभित हुये, यथा जैसे, धुमणिः = द्युमणि, (राजते सुशोभित होती है)।
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श्लोकार्थ और वे मुनिराज गयारह अगों को धारण करके सोलह भावनाओं और अङ्गों को धारण करने के समान जानकर उनकी भावना करके वैसे ही सुशोभित हुये जैसे धुमणि सुशोभित होती है।
आयुषोऽन्ते च सन्यासविधिना देहमुत्सृजन् । सवार्थसिद्धिनामविमानं
अन्वयार्थ – च = और, आयुषः आयु के
प्राप्तवान्मुनिः ||६||
अन्ते : अन्त में, सन्यासविधिना = सन्यास मरण की रीति से, देहम् = देह को,
उत्सृजन् =