Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य अभवत् -- हुये थे, च = और, शुक्लध्यानविधानशुभ्रहृदयः = शुक्लध्यान को करने से शुभ्र-शुद्ध हृदय वाले. (सः = उन्होंने), सिद्धालयं = सिद्धालय को, प्राप्तवान = प्राप्त किया, यस्य च = और जिस टोंक की, शैले = पर्वत पर, स्पृहा = प्रातियोगिक प्रतिष्ठा, (अस्ति - है), उत्तमजनाः :- हे उत्तम जनो!. (यूयं - तुम सभी), तं = उस सम्मेदशिखर को और आनन्दकूट को, यत्नैः = प्रयत्नों से अर्थात् प्रयत्न करके,
परिपश्यत = अच्छी तरह से देखो, वन्दना या दर्शन करो। श्लोकार्थ -- जो नाना प्रकार के पापों के बीज अर्थात् मोह को नष्ट करने
में निपुण देवाधिदेव अर्हन् तीर्थकर अभिनन्दननाथ जिस आनन्दपूर तालकटोक पर हुये थे और शुक्लध्यान को करके शुद्ध हृदय वाले उन्होंने सिद्धालय को प्राप्त किया तथा जिस टोंक की उस पर्वत पर स्पर्धात्मक प्रतियोगिता प्रतिष्ठा है। हे उत्तमजनों तुम सभी प्रयत्न करके उस टोंक की और पर्वत की वन्दना करो, अच्छी तरह उसे देखो। (इति श्री सम्मेदशिखर माहात्म्ये आनन्दकूटवर्णन नाम तीर्थकराऽभिनन्दननाथकथोद्धारतत्परश्च
चतुर्थोऽध्यायः समाप्तः।) (इस प्रकार श्रीसम्मेदशिखर माहात्म्य में दत्तधवलकूट का वर्णन और तीर्थङ्कर अभिनन्दन नाथ की कथा को उद्घाटित
करने वाला चतुर्थ अध्याय समाप्त हुआ ।)