Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य त्रैलोक्यगुरवे = तीनों लोक के गुरु के लिये, नमः = नमस्कार, भव्यानन्दकत्रे = भव्यों के लिये आनन्द के कर्ता के लिये, नमः = नमस्कार, सुमतिप्रभे = सुमतिप्रभु के लिये, नमः =
नमस्कार। श्लोकार्थ – भव्य जीवों को आनन्द के कर्ता तथा तीन लोक के गुरु परम
भगवान सुमति प्रभु तुम्हारे लिये हमारा नमस्कार है। चतुरूत्तरलक्षोक्तयोजनैर्विश्वतो महान् ।
दीव्यते धातकीखण्डो विदेहक्षेत्रसंयुतः।।४।। अन्वयार्थ – चतुरूत्तरलक्षोक्तयोजनैः = चार लाख योजनों से, विश्वतः =
सबसे. महान = बडा, विदेह क्षेत्र संयुतः = विदेह क्षेत्र से संयुक्त, धातकीखण्डः = धातकीखण्ड, दीव्यते . दीप्तिमान
श्लोकार्थ – चार लाख योजन विस्तार वाला होने से धातकीखण्ड द्वीप
सबसे बड़ा है तथा विदेह क्षेत्र से संयुक्त होकर दीप्तिमान
तत्र सीतानदी रम्या कलुषमी तदुत्तरे ।
समृद्धदेशः सम्भाति नामतः पुष्कलावती ।।५।। अन्ययार्थ – तत्र = उस धातकी खण्ड द्वीप के विदेहक्षेत्र में, रम्या =
रमणीय, (च - और), कलुषघ्नी = पापनाशिनी, सीतानदी = सीता नदी, (वर्तते = है), तदुत्तरे = उस नदी के उत्तर में, नामतः = नाम से. पुष्कलावती = पुष्कलावती, समृद्धदेशः = एक समृद्धिपूर्ण देश, सम्भाति = अच्छी तरह सुशोभित होता
श्लोकार्थ . उस धातकीखण्ड द्वीप के विदेह क्षेत्र में एक रमणीय और
पापनाशिनी सीता नदी है, जिसके उत्तर में पुष्कलावती नामक एक समृद्धि सम्पन्न देश सुशोभित होता है। पुण्डरीकपुरं तत्र रम्यं रम्यजनोषितम्।
धृतिषणो महान् राजा पाति स्म नगरं च तत्।।६।। अन्वयार्थ – तत्र = उस पुष्कलावती देश में, रम्यजनोषितम् = रमणीय