Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य होने योग्य है अथवा नहीं? आप सब कुछ जानते हैं इसलिये मुझे बताइये । राजा के ऐसे वचन सुनकर मुनिराज राजा से
बोले। भूपतेऽवधिभूतेन मया चित्ते विचारितः । तव सम्मेदशैलस्य यात्रा नूनं भविष्यति ।।६१।। अन्वयार्थ ... भूपत्ते = हे राजन! अवधिभूतेन = अवधिज्ञान स्वरूप, मया
-- मेरे द्वारा, चिते = मन में, विचारितः = विचार लिया गया है। सम्मेदशैलस्य = सम्मेदशिखर शैलराज की, तव = तुम्हारी. यात्रा = तीर्थवन्दना रूप यात्रा, नूनं = अवश्य ही.
भविष्यति = होगी। श्लोकार्थ - हे राजन! अवधिज्ञान स्वरूप वाले मैंने मन में विचार कर लिया
है कि सम्मेदशिखर शैलराज की तुम्हारी तीर्थयात्रा अवश्य
ही होगी। गुणगम्भीरसिन्धुस्त्वं सत्यभावसमन्वितः ।
भव्योऽसि भव्यजीयानां तस्य यात्रा स्मृता बुधैः ।।६२।। अन्वयार्थ - बुधैः = विद्वज्जनों द्वारा, तस्य = सम्मेदशिखर की, यात्रा =
यात्रा. भव्यजीवानां = 'मव्यजीवों के लिये, स्मृता = बतायी गयी है, त्वं = तुम, गुणगम्भीरसिन्धुः = गुणों के गंभीर सागर. सत्यभावसमन्वितः = सत्यभावों से युक्त सात्त्विक, भव्य: =
भव्यजीव, असि = हो। श्लोकार्थ – विद्वज्जनों ने बताया है कि सम्मेदशिखर की यात्रा भव्यजीवों
के लिये ही हो पाती है। हे राजन! तुम गुणों के गंभीर सागर,
सत्यमावों के जानकार सात्त्विक और भव्य हो। मुनिवाक्यं समाकर्ण्य राजा हर्षसमाकुलः । यात्रोन्मुखो बभूवासी श्रीमत्सम्मेदभूभृतः ।।३।। अन्वयार्थ – हर्षसमाकुलः = प्रसन्नता से आन्दोलित. असौ = वह, राजा
= राजा, मुनिवाक्यं = मुनिराज के वचन को. समाकर्ण्य = सुनकर, श्रीमत्सम्मेदभूभृतः = श्री सम्पन्न सम्मेदशिखर पर्वत की, यात्रोन्मुखः = यात्रा के लिये उन्मुख. बभूव = हो गया।