Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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चतुर्थ
१३१
श्लोकार्थ – हर्षोल्लसित या प्रसन्नता से आन्दोलित वह राजा मुनिराज
के वचन सुनकर श्रीसम्मेदशिखर पर्वत की यात्रा के लिये
उन्मुख–अग्रसर हो गया। वार्ता सम्मेदयात्रायाः गता पृथ्वीपतेस्तदा ।
अभव्यस्तन्महीपालः सोऽपि यात्रोन्मुखोऽभवत् ।।६४।। अन्वयार्थ – पृथ्वीपतेः = राजा विजयभद्र की, सम्मेदयात्रायाः =
सम्मेदशिखर की यात्रा, वार्ता - बात, (सर्वत्र = सब जगह), गता -- पहुंच गयी या फैल गयी, तदा = तब, तन्महीपालः = वहाँ राज], (एकः = एक). अभव्यः = अभव्य, (आसीत् = था), सः = वह. अपि = भी, यात्रोन्मुखः = यात्रा के सन्मुख,
अभवत् = हो गया। श्लोकार्थ - राजा विजयभद्र की सम्मेदशिखर की तीर्थयात्रा करने वाली
बात सभी जगह फैल गयी, वहाँ एक अभव्य राजा था तो वह भी तभी सम्मेदशिखर की यात्रा करने के सन्मुख हो गया
अर्थात् उसने भी यात्रा प्रारंभ की। राजा विजयभद्रोऽसौ ससंघश्च ससैनिकः । चचाल गिरियात्रायै कृतनानामहोत्सवः ।।५।। अन्वयार्थ – असौ = वह, राजा = राजा, विजयभद्रः = विजयभद्र, ससंघ:
= संघों सहित, ससैनिकः = सैनिकों सहित, कृतनानामहोत्सवः = अनेक प्रकार से अत्यधिक उत्सव करता हुआ, गिरियात्रायै
= सम्मेदशिखर की तीर्थ यात्रा के लिये, चचाल = चला। श्लोकार्थ – वह राजा विजयभद्र जिसे मुनिराज ने भव्य कहा था,
मुनि-आर्यिका, श्रावक-श्राविका उन चारों संघों के साथ और सैनिकों के साथ अनेक-अनेक महान उत्सव करता हुआ सम्मेदशिखर सिद्ध क्षेत्र की तीर्थवन्दना रूप यात्रा के लिये
चल दिया। सोऽपि राजाचलद् यात्रामुद्दिश्य बलसंयुतः ।
स्वप्नेऽपश्यत्स्वपुत्रं स मृतं मोहान्यवर्तत ||६६।। अन्वयार्थ – (तथा च = और), सः = वह, राजा = अभव्य राजा, अपि =