Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य कुमारकालगमने राज्यं सम्प्राप्य पैतृकम् ।
अनेकस्त्रीसमायुक्तः परमं सुखमन्वभूत् ।।३१।। अन्वयार्थ – कुमारकालगमने = कुमारकाल के जाने पर, अनेकस्त्रीसमायुक्तः
= अनेक स्त्रियों का स्वामी होता हुआ, (अस = यह), पैतृकं = पिता से प्राप्त, राज्यं = राज्य को, सम्प्राप्य = प्राप्तकर.
परमं = उत्कृष्ट, सुखं = सुख को. अन्वभूत् = अनुभूत किया। श्लोकार्थ – कुमार काल के बीत जाने पर अनेक स्त्रियों के स्वामी होकर
उन प्रभु ने पैतृक राज्य को प्राप्त किया तथा उत्कृष्ट सुख
को भोगा. उसका अनुभव किया। एकदा सौधगो राजा सिंहासनगतः प्रभुः । पञ्चवर्णनं दृष्ट्या विनष्टमुदितं च खे ।।३२।। शीघ्रवैराग्यमापन्नो लौकान्तिकनुतस्ततः । सुरैः कृतोत्सयो भूयः सुरोदशिविकास्थितः ।।३३।। स्वयंभूर्यनगो माघे शुक्लद्वादशके दिने । पुनर्वसौ स जमाह दीक्षां परमपावनीम् ।।३४।। अन्वयार्थ – एकदा = एक दिन, सौधगः = महल के ऊपर गये हुये.
सिंहासनगतः = सिंहासन पर स्थित, राजा = राजा ने, खे = आकाश में, पञ्चवर्णघनं = पंचरंगी बादलों को, उदितं = उत्पन्न होते हुये, च = और, विनष्टं = विनष्ट होते हुये. दृष्ट्वा = देखकर. शीघ्रवैराग्यं = जल्दी ही वैराग्य को, आपन्न: - प्राप्त कर लिया। ततः = तदन्तर, भूयः = बार-बार, लौकान्तिकनुतः = लौकान्तिक देवों द्वारा नमस्कार किया जाता हुआ, सुरैः :- देवताओं द्वारा, कृतोत्सवः = जिसका उत्सव किया गया है वह, सुरोदशिविकास्थितः = देवताओं द्वारा ले जायी गई पालकी में बैठा हुआ, (तथा = और), वनगः = वन को गये हुये. सः = उसने, स्वयंभूः = स्वयं दीक्षित होकर, माघे = माघ मास में, शुक्लद्वादशके: शुक्लपक्ष की द्वादशी के, दिने = दिन, पुनर्वसौ = पुनर्वसु नक्षत्र में, परमपावनी = परम पावन स्वरूप वाली, दीक्षां = दीक्षा को, जग्राह = ग्रहण किया।