Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य होगा, राजा के उक्त प्रश्न पर सोच-विचार कर मुनिराज ने
राजा से कहा-हे राजन् मेरे कहे अनुसार तुम करो। सम्मेदशैलयात्रातस्तव पुत्रो भविष्यति । पुत्रसौख्यमनुप्राप्य पश्चात्त्वं मुक्तिमेष्यसि ।।७।। अन्वयार्थ - सम्मेदशेलयात्रातः = सम्मेदशिखर की यात्रा अर्थात् वन्दना
से, तव :- तुम्हारा, पुत्रः = पुत्र, भविष्यति = होगा, पुत्रसौख्यम् = पुत्र का सुख, अनुप्राप्य = पाकर अनुभव करके, पश्चात् = बाद में, त्वं = तुम, मुक्तिं = मोक्षलक्ष्मी को. एण्यसि =
पाओगे। श्लोकार्थ - सम्मेदशिखर की तीर्थ यात्रा अर्थात् वन्दना करने से तुम्हारे
पुत्र होगा। अनुक्रम से पुत्र का सुख पाकर अनुभव करके
तत्पश्चात् तुम मोक्ष सम्पदा को भी प्राप्त करोगे। मुनेराशा समादाय देव्या सह महीपतिः । रक्ताम्बरधरस्तूर्ण यात्रायै सम्मुखोऽभवत् । ७१।। अन्वयार्थ - मुनेः = मुनिराज से, आज्ञा = आज्ञा, समादाय = लेकर,
महीपतिः = राजा, देव्या सह = रानी के साथ, रक्ताम्बरधरः = रक्तपूर्ण के लाल कपड़े धारण किये हुये, तूर्ण = शीघ्र, यात्रायै = तीर्थ वन्दना के लिये. सम्मुखः = समुद्यल-तैयार,
अभवत् = हुआ। श्लोकार्थ - मुनिराज से आज्ञा लेकर वह राजा अपनी रानी के साथ रक्त्त
वर्ण के लाल वस्त्र धारण किये हुये शीघ्रता से तीर्थराज की यात्रा करने के लिये तैयार हो गया है अर्थात् तीर्थ यात्रा करने
को निकल पड़ा। कोटिमानवसंयुक्तः चतुःसंघान्प्रपूज्य सः ।
महोत्साहेन संयुक्तः सम्मेदमगमन्नृपः ।।७२।। अन्वयार्थ - चतुःसंघान् = चारों संघों को विधिवत पूजकर, कोटिमानवसंयुक्त:
= एक करोड़ मनुष्यों को साथ लेता हुआ, सः = वह, तृपः = राजा. महोत्साहन संयुक्तः = महान् उत्साह से सहित होता