Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य निवास किया और एक हजार मुनियों के साथ वैशाख कृष्णा षष्ठी के दिन परमदुर्लभ मुक्ति प्राप्त कर ली। उनकी मुक्ति हो जाने के बाद चौथे तीर्थङ्कर अभिनन्दन नाथ के समय तक इसी कूट पर नौ कोडा कोड़ी बहत्तर लाख सात हजार बयालीस सौ पांच मुनियों ने मुक्त होकर सिद्ध दशा को प्राप्त किया। इसीलिये कवि कहता है कि इस दत्तधवल कूट की सच्ची यात्रा करने वाले के तिर्यञ्च गति और नरक गति का नाश हो जाता है और बयालीस लाख प्रोषघोपवास करने से
जितना फल होता है उतना फल उत्पन्न हो जाता है। - अनायासादवाप्नोति तत्कूटस्य च यात्रिकः । एककूटफलं
होतत्सर्वकूटप्रपूजनात !६१।। यत्फलं तत्फलं वक्तुं वाग्देव्यापि न शक्यते । मादृशश्चाल्पमेधास्तु तत्कथंः कथगितु क्षमः ।।२।। अन्वयार्थ · च = और, तत्कूटस्य = उस दत्तधवल कूट का, यात्रिकः =
वन्दना करने वाला यात्री, अनायासात् = विना प्रयास से, (प्रोक्तफलं = ऊपर कहे गये फल को), अवाप्नोति = प्राप्त कर लेता है । एतत् = यह. एककूटफलं = एक कूट की यात्रा का फल, हि = ही, (ज्ञेयम् = जानना चाहिये), सर्वकूटप्रपूजनात = सारी टोकों की वन्दना-पूजन करने से, यत्फलं = जो फल, (भवति = होता है), तत्फलं = वह फल, वाग्देव्या = वाग्देवी द्वारा, अपि = भी, वक्तुं = कहा, न = नहीं, शक्यते = जा सकता है। च = फिर, मादृशः = मेरे जैसा, अल्पमेधाः = अल्प बुद्धिवाला, तु = तो, तत् = वह फल, कथयितुं = कहने के लिये, कथं = कैसे, क्षमः = समर्थ, (भवितुं शक्नोति = हो
सकता है)। श्लोकार्थ - इस प्रकार उपर्युक्त फल को दत्तधवल कूट की यात्रा करने
वाला यात्री सहज रूप से प्राप्त कर लेता है। यह तो एक कूट का फल बताया गया है। सभी कूटों अर्थात् सम्मेदशिखर