Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य कतिचिद्देवतासार्थ तस्य विद्याधरास्तथा ।
महासमर्थास्तैर्युक्तः सगरो राज्यमन्चभूत् ।।३५ ।। अन्वयार्थ - तस्य = उस चक्रवर्ती की. (आज्ञा = आज्ञा को) देवतासार्ध
= देवताओं के साथ, कतिचित् = कितने ही, महासमर्थाः = अत्यधिक सामर्थ्य वाले, विद्याधराः = विद्याधर, (अपि = भी), (स्वीकुर्वन्ति स्म - स्वीकार करते थे) तथा = और, तैः = उन सभी से. युक्तः = युक्त अर्थात् मिलकर, सगरः = सगर चक्रवर्ती, (अपि = भी), राज्यम् = राज्य को, अन्यभूत् =
अनुभव करता था अर्थात् उसके आनंद को भोगता था । श्लोकार्थ - उस चक्रवर्ती की आज्ञा को देवताओं के साथ कितने ही
अत्यधिक सामर्थ्य वाले विद्याधर भी मानते थे तथा वह भी
उनसे मित्रता रखकर राज्य सुख को भोगता था। एकदा भूतपोद्याने चारणौ द्वौ समागतौ ।
अजितंजय एकोऽभून्नाम्नान्यश्चामितञ्जयः ।।३६।। अन्वयार्थ - एकदा = एक बार, भूतपोद्याने = गूतप नामक उद्यान में, द्वौ
= दो, चारणौ - चारण ऋद्धिधारी मुनिराज. समागतौ = आये थे. (तयोः = उनमें), एकः = एक, अजितंजयः = अजितंजय मुनिराज, अन्यश्च = और दूसरे, अमितंजयः = अमितंजय
मुनिराज, अभूत् - थे। श्लोकार्थ - एक बार भूतप नामक उद्यान में दो चारण ऋद्धिधारी मुनिराज
आये। जिनमें एक मुनिराज अजितंजय और दूसरे मुनिराज
अमितंजय थे। श्रुत्वा तावागतौ राजा हर्षेण महतोत्सुकः ।
तत्र गत्वा चिरं भूयः शिरसा प्रणनाम सः ।।३७ ।। अन्वयार्थ - तौ = वे दोनों मुनिराज, आगतौ = आये हैं, (इति = ऐसा),
श्रुत्वा = सुनकर, हर्षेण - हर्ष से, महोत्सुक. = महान हुआ, सः = उस, राजा = चक्रवर्ती सगर ने, तत्र = वहाँ, 'भूतप