Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य ज्येष्टमासे यमायां च रोहिण्यां गर्भगोऽभवत् । तेन सा शुशुभे देवी सुबुद्धिर्ज्ञानतो यथा ।।४।। माघशुक्लदशम्यां च रोहिण्यां भाग्यतोऽद्भुतात् ।
आविरासीत्प्रभुस्तस्य गृहे सूर्यग्रहोपगमे ।।६५।। अन्वयार्थ - तत्र = उस अयोध्या नगरी में, धर्माधिचन्द्रमाः = धमरूपी
सागर का बड़ान पाले चन्द्रभा. (इव = के समान). दृढ़रथाख्यः = दृढ़रथ नामक, राजा - राजा, अभूत् - था, अस्य = इस राजा की, राज्ञी = रानी, विजयसना = विजयसेना, (आसीत् - थी), सा = उसने, च = और, षोडश = सोलह, स्वप्नान् = स्वानों को, वीक्ष्य - देखकर, स्वगर्ने - अपने गर्भ में, अहमिन्द - अहमिन्द्र को. उत्तम = उत्तम, सुतं = पुत्र को. दधार = धारण किया, च = और, पूर्वतः = पहिले से, षण्मासं रत्तवृष्टेः = छह माह तक रत्न वर्षा के, सौख्यं = सुख को, सम्प्राप्य = पाकर, ज्येष्ठमासे :: ज्येष्ठ मास में, अमायां = अमावस्या के दिन, रोहिण्यां :- रोहिणी नक्षत्र में, (स::- देव), गर्गगो = गर्भ में रहने वाला, अभवत् = हो गया, यथा = जैसे, ज्ञानतः = ज्ञान से सुबुद्धिः = सम्यक् बुद्धि, शुशुभे = सुशोभित होती है, (तथा = वैसे), तेन = उसके गर्भ में आने से. सा = वह, देवी = रानी, शुशुभे = सुशोभित हुई, च = और, अद्भुतात् = अद्भुत, भाग्यात् = भाग्य से, माघशुक्लदशम्यां = माघ सुदी दशमी के दिन, रोहिण्यां = रोहिणी नक्षत्र में, तस्य = उस दृढ़रथ राजा के. सूर्यग्रहोपमे = सूर्य ग्रह की उपमा वाले, गृहे : घर में, प्रभुः = भगवान्, आविरासीत् =
प्रकट हुये। __ श्लोकार्थ · उस अयोध्या नगर में धर्म रूपी समुद्र को बढ़ाने में चन्द्रमा
के समान दृढ़रथ नामक राजा था। जिसकी रानी विजयसेना थी। उसने सोलह स्वप्न देखकर अहमिन्द्र को उत्तम पुत्र के रूप में अपने गर्भ में धारण किया । गर्भ में आने से छह मास पूर्व से रत्नदृष्टि करने का सुख पाकर वह अहमिन्द्र ज्येष्ठ