Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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द्वितीया
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= सम्मेदशिखर तीर्थ की यात्रा को सुपुत्रप्राप्तये सुपुत्रप्राप्तये = सुपुत्र की प्राप्ति के लिये ध्रुवं निश्चित ही कुर्वीत करे, रोगार्तः = रोग से पीड़ित, चेत् = यदि, कृष्णवस्त्राणि = काले वस्त्र, धृत्वा धारण करके, यात्रिकः = यात्रा करने वाला, भवत्
कुछ ही दिनैः = दिनों,
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= होये, (तर्हि = तो), कतिपयैः एव ( सह = के साथ), सरोग: रोग वाला, अरोगतां = रोगरहित दशा को ब्रजेत् = पहुंच जाये या पा जाये, च = और, चेत् = यदि, सम्मेदयात्रिकः सम्मेदशिखर की यात्रा वाला, ( कश्चित् = कोई ). कुत्रापि कहीं पर भी, शोकं = शोक को, न = नहीं, हि - ही, आप्नुयात् = पाये, यः = जो लक्ष्मीकामः - धन चाहने वाला, नरः = मनुष्य, (अस्ति == है), तु तो, सः = वह, रक्तवाससी = ताम्रवर्णीय वस्त्रों को, धृत्वा = धारण करके, सम्मेदशैलराजस्य = पर्वतराज सम्मेदशिखर की यात्रां यात्रा को प्रयत्नतः = प्रयत्न से, कुर्यात् = करे 1
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श्लोकार्थ जो मोक्षफल को चाहने वाला है वह श्वेत वस्त्र पहनकर सम्मेदशिखर की यात्रा करे। जो पुत्र चाहने वाला है यह सुपुत्र की प्राप्ति के लिये पीले वस्त्र धारण करके सम्मेदशिखर की यात्रा करे। यदि रोग से पीड़ित काले वस्त्र धारण कर यात्रा करने वाला होवे तो कुछ ही दिन बाद वह सरोगी निरोगता को प्राप्त होये । तथा यह भी कि जो सम्मेदशिखर की यात्रा करने वाला है वह कहीं पर शोक को प्राप्त नहीं होवे । जो लक्ष्मी चाहने वाला है वह ताम्रवर्णीय वस्त्र धारण कर पर्वतराज सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्र की यात्रा प्रयत्न पूर्वक करे । इत्थं चारणसद्वाक्यं श्रुत्वा हर्षसमन्वितः । सगरश्चक्रवर्त्येष पुनर्वचनमब्रवीत् ।। ५० ।। अन्वयार्थ इत्थं = इस प्रकार, चारणसद्वाक्यं = चारण ऋद्धिधारी मुनिराज के सम्यक् वचनों को, श्रुत्वा = सुनकर, हर्षसमन्वितः हर्ष से आनन्दित, एष: यह चक्रवर्ती = चक्रवर्ती, सगर
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