Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य = इस नाम से, उक्तः = कहा गया, अस्य = उसकी, आयु: = आग, लाति शान्: -: माह पूर्व की, प्रकीर्तितम् - कही गयी है, च = और, उच्छ्रिता = ऊँचाई, सार्धानां = आधे सहित, चतुशतानां - चार सौ, धनुषा = धनुष की, स्मृता = स्मरण की गयी है, बाल्ये = बाल्यकाल में, अस्य = इसकी. आयुषः = आयु के. अष्टादशलक्षोक्तपूर्वाणि = कुल उक्त आयु के अठारह लाख पूर्व. गतानि = बीत गये, तदा - तब, असौ = उस, नृपः = राजा ने, किल = निश्चय ही, चक्रवर्तित्व = चक्रवर्तीपने को प्राप्तवान् = प्राप्त कर लिया
था। श्लोकार्थ - जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में, शुभ आर्य खण्ड में, कौशल नामक
महान् देश में, अयोध्या नामक उत्तम नगर में समुद्रविजय नामक एक धार्मिक राजा था, उसकी पत्नी सुबला थी, दोनों ही परस्पर स्नेह के साथ रहते थे। यह समद्रविजय राजा इक्ष्वाकुवंश में उतान्न काश्यपगोत्रीय था। जिसके घर में महाबल नामक देव स्वर्ग से च्युत होकर पुत्र हुआ । यह धर्म भावना से भरपूर परमधर्म को धारण करने वाला था, परम तेजस्वी और पराक्रम का सागर था अतः यह 'सगर इस नाम से कहा गया अर्थात् उसका नाम सगर रखा गया। इसकी आयु सत्तरलाख पूर्व की बतायी गयी है तथा शरीर की ऊँचाई साढ़े चार सौ धनुष की बतायी जाती है। इसकी आयु के जब अठारह लाख पूर्व बाल्यकाल में व्यतीत हो गये तो उसे
चक्रवर्ती पद निश्चय ही प्राप्त हो गया था। पक्रादिशुभरत्नानि चतुर्दशमितानि च । निधयो नव तलच्च सम्प्राप्तास्तेन चक्रिणा ||३१|| षडुत्तरमवत्युक्तसहस्रप्रमिताः
शुभाः । राज्ञस्तस्य समाख्याता राज्ञयः सौन्दर्यनिर्भराः ।।३२।। अन्ययार्थ - तेन = उस, चक्रिणा = चक्रवर्ती ने, चतुर्दशमितानि = चौदह