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आचारदिनकर (खण्ड- ४ )
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प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
यहाँ तीनों पदों में “आर्ष" सूत्र से बहुवचन के स्थान पर एकवचन का प्रयोग किया गया है ।
विमल - जिनके कर्म चले गए हैं, अर्थात् नष्ट हो चुके हैं तथा जिनके चित्त का मल जा चुका है, ऐसे विमलनाथ भगवान् को । मणंतं जिनमें सम्पूर्ण गुण अनंतरूप में रहे हुए हैं, ऐसे अनंतनाथ भगवान् को ।
धम्मं - दुर्गति में पड़ते हुए जीवों की जो रक्षा करते हैं, ऐसे धर्मनाथ भगवान् को I
संतिं - तीनों लोकों में जो शान्ति करने वाले हैं, ऐसे शान्तिनाथ को ।
कुंथुं - जिसने स्त्रीरूप पृथ्वी को ढका है, अर्थात् सम्पूर्ण पृथ्वी पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया है तथा अभयदान द्वारा जीवों की रक्षा की है, ऐसे कुंथुनाथ भगवान् को ।
अरं - जो मोक्ष में जाने वाले हैं, ऐसे अरनाथ भगवान् को 1 मल्लिं जिसने मोह के साथ मल्लयुद्ध किया है, ऐसे मल्लिनाथ भगवान् को ।
मुनिसुव्वयं - जो मुनि के व्रतों से सुशोभित हैं, ऐसे मुनिसुव्रत
को ।
नमि जिसने अपने दुष्ट अन्तर शत्रुओं को नमा दिया है तथा जो सदा विनम्र है, अर्थात् जिन्होंने अपने अंतरंग शत्रुओं को जीत लिया है, ऐसे नमिनाथ भगवान् को मैं वन्दन करता हूँ, नमस्कार करता हूँ।
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रिट्ठनेमिं - उपद्रवों का छेदन करने वाले, जो चक्र की धुरी के समान हैं, ऐसे अरिष्टनेमि को 1
पासं - जिन्होंने समीप में रही हुई वस्तु को देखा है, ऐसे पार्श्वनाथ को ।
वद्धमाणं जिनके सभी गुणों का वर्द्धन हुआ है, ऐसे वर्द्धमान को मैं वन्दन करता हूँ ।
वन्दे शब्द को सर्वत्र ग्रहण करते हैं
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