Book Title: Prayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Author(s): Mokshratnashreejiji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 452
________________ आचारदिनकर (खण्ड- ४ ) प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि साधु-साध्वी की ऋतुचर्या पुनः, साधु-साध्वी की ऋतुचर्या सम्बन्धी जिस विधि-विधान का वर्णन किया गया है, वह कषाय तथा इन्द्रियनिग्रह के उद्देश्य से किया गया है । इसी प्रकार वह राग-द्वेष आदि का हरण करने वाली विहार - विधि को तथा कायक्लेश, तप, स्थिरवास, लोच, मलादि के उत्सर्ग की विधि को जानने और भाषासमिति के निर्वाह के लिए है । इस प्रकार सर्व अकरणीय कार्यों का सम्यक् ज्ञान प्राप्त करने एवं उनका त्याग करने हेतु भी यह संस्कार परमावश्यक है । मन, वचन एवं काया के निग्रह के लिए व्रत श्रेष्ठ है 408 Jain Education International - जाती है । 1 अन्त्यकर्म-संस्कार इस संस्कार में साधु-साध्वियों को क्षामणा आदि देने का जो विधि-विधान बताया गया है, वह कर्मक्षय, सुमति एवं शुभध्यान आदि की प्राप्ति हेतु है । साधु एवं श्रावकों द्वारा मुनि के शव की जो क्रिया की जाती है, वह उनकी सनाथता के आख्यापन हेतु तथा पुनः उनका जन्म न हो इस उद्देश्य से की यह अन्त्यकर्म - संस्कार का सार है। प्रतिष्ठा विधि प्रतिष्ठा नामक जो विधि-विधान है, वह अचेतन प्रतिमा आदि में मंत्रादि द्वारा देवता का प्रवेश करवाने के लिए किया जाता है। प्रथम पाषाण, काष्ठ एवं रत्नादि से अचेतन मूर्ति का निर्माण करते हैं, फिर मंत्रन्यास, आचार्य के वचन एवं स्थापना-विधि करने से उसे देव के रूप में पूज्यता प्रदान करते हैं। “ नाम, स्थापना, द्रव्य एवं भाव से 'जिन' चार प्रकार के होते हैं" - यह आगम-वाक्य है । इसी प्रकार सर्व विधि-विधानों के प्रयोजन को तत्त्वशास्त्र से जानें । इस संस्कार में वेदी, प्रदीप, कल्पादि के तथा मुद्राकर्म आदि के जो विधि-विधान किए जाते हैं, वे सब देवगृह के सकलीकरण, अर्थात् संरक्षण हेतु किए जाते हैं। विघ्न से उसकी रक्षा करने के लिए कंकण - बंधन किया जाता है। मणि, मंत्र, औषधि आदि का भी अपना प्रभाव होता है। तीन सौ साठ क्रियाणकों द्वारा की जाने वाली पूजा भी उनके औषधिरूप पर आधारित है। सभी औषधियों का अपना-अपना कुछ न कुछ प्रभाव होता है । बिम्ब पर उनका प्रभाव होने से वह बिम्ब उसके पूजक ( साधक) को सिद्धि प्रदान करता है। अब नंद्यावर्त्त की जो स्थापना की जाती है, उसका कारण बताते हैं . www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only

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