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आचारदिनकर (खण्ड-४
भावार्थ
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अब दूसरे व्रत के विषय में लगे हुए अतिचारों का प्रतिक्रमण किया जाता है। प्रमाद के वश, अथवा क्रोधादि अप्रशस्तभाव का उदय होने से स्थूलमृषावाद - विरमणव्रत में जो कोई अतिचार लगा हो, उससे मैं निवृत्त होता हूँ ।
भावार्थ
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१. बिना विचारे किसी के सिर दोष मढ़ने से । २. एकान्त में बातचीत करने वाले पर दोषारोपण करने से । ३. स्त्री की गुप्त एवं मार्मिक बातों को प्रकट करने से । ४. जानते या अजानते मिथ्या उपदेश देने से । ५. झूठ लेख लिखने से दूसरे व्रत के विषय में दिवस सम्बन्धी छोटे-बड़े जो अतिचार लगे हों उन सबसे मैं निवृत्त होता
विशिष्टार्थ
द्वितीय स्थूलमृषावाद अणुव्रत में कन्या, गो, भूमि आदि के सम्बन्ध में झूठ बोलना, उनके सम्बन्ध में कुछ छिपाना, कूटसाक्षी आदि देना - इन सबसे विरति होती है । इन व्रतों का अतिक्रम करना अतिचार कहलाता है ।
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मोसुवएसे जानते अथवा अजानते औषधि, मंत्र आदि के सम्बन्ध में मिथ्या बोलना ।
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प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
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( तीसरे अणुव्रत के अतिचारों की आलोचना )
" तइए अणुव्वयम्मी, थूलग परदव्व हरण विरइओ । आयरियमप्पसत्थे, इत्थ पमायप्पसंगेणं । । १३ ।। तेनाहडप्पओगे, तप्पडिरूवे विरूद्ध गमणे अ ।
कूडतुल- कूडमाणे, पडिक्कमे देवसिअं सव्वं । । १४ । । “
तीसरे अणुव्रत के विषय में लगे हुए अतिचारों का प्रतिक्रमण किया जाता है । प्रमाद के प्रसंग से, अथवा क्रोधादि अप्रशस्त भावों का उदय होने से स्थूल अदत्तादान - विरतिव्रत के विषय में दिवस सम्बन्धी जो कोई अतिचार लगे हों, उन सबसे मैं निवृत्त होता हूँ ।
चौदहवीं गाथा द्वारा तीसरे व्रत के पाँच अतिचारों का प्रतिक्रमण किया है, ये पाँच अतिचार इस प्रकार हैं
१. चोरी का
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