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आचार्य, उपाध्याय आने पर खमारने की अनुज्ञा प्रकहता है -
आचारदिनकर (खण्ड-४) 232 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि एवं साधुओं को सामान्य वन्दन करता है। - इस प्रकार पौषध ग्रहण करने की यह सामान्य विधि बताई गई है।
अहोरात्रि का पौषध ग्रहण करने की विधि इस प्रकार है -
ब्रह्ममुहूर्त में पूर्वोक्त विधि से (श्रावक) पौषध ग्रहण करता है। पूर्व में उल्लेखित संख्या के अनुसार खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करके उपधि एवं वसति की प्रतिलेखना करे। तत्पश्चात् प्रतिक्रमण का समय होने पर प्राभातिक (प्रातःकाल) का प्रतिक्रमण करता है। प्रतिक्रमण के अन्त मे दो बार खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करके बहुवेल, अर्थात् अनेक छोटी-छोटी क्रियाओं को करने की आज्ञा प्राप्त करता है तथा उन क्रियाओं को करता है। इस प्रकार बहुवेल का आदेश प्राप्त करके आचार्य, उपाध्याय एवं सर्व साधुओं को वन्दन करता है। तत्पश्चात् प्रतिलेखनाकाल के आने पर खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करके कहता है - "हे भगवन् ! मुझे प्रतिलेखना करने की अनुज्ञा प्रदान कीजिए। पुनः दूसरी बार खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करके कहता है -“मैं प्रतिलेखना करता हूँ। इस प्रकार कहकर मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे। तत्पश्चात् पुनः खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करके कहे -"हे भगवन् ! मुझे अंग प्रतिलेखना करने की अनुज्ञा प्रदान कीजिए" तथा दूसरी बार खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करके -"मैं अंग-प्रतिलेखना करता हूँ"- इस प्रकार कहकर अपने वस्त्रों की प्रतिलेखना करके स्थापनाचार्य की प्रतिलेखना करे। पुनः श्रावक कहे - "हे भगवन् ! इच्छापूर्वक आप मुझे उपधि ग्रहण करने हेतु मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करने की अनुज्ञा प्रदान करें। इस प्रकार कहकर मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करके खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करके कहे - "हे भगवन् ! उपधि ग्रहण करूं ?" तथा दूसरी बार खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन कर कहे - "हे भगवन् ! उपधि की प्रतिलेखना करूं ?" इस प्रकार कहकर वस्त्र, कंबल आदि की प्रतिलेखना करता है। पुनः खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करके कहता है"हे भगवन् ! वसति की अनुज्ञा प्रदान करें। दूसरी बार खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करके कहे - "हे भगवन् ! वसति की प्रतिलेखना करूं ?" इस प्रकार कहकर वसति एवं मात्रकादि की
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