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आचारदिनकर (खण्ड- ४ )
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प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि राणा के नाम से प्रसिद्ध होता है । उसकी पदारोपण - विधि इस प्रकार
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गुरुजन, महाभूपति एवं सामन्त द्वारा तिलक करने मात्र से ही उसका पदारोपण हो जाता है। उसे अनुशासित करने की प्रक्रिया भी सामन्त की भाँति ही है । उसके उपकरण इस प्रकार हैं अश्व एवं पैदल सैन्य, वेत्रासन, पटह, दुंदुभिवाद्य, चामरांकित पताका ( या गृह), श्वेतपट का मण्डप, स्वयं के वाहनरूप एक रथ यह सामग्री मण्डलेश्वर की प्रभुता को प्रदर्शित करने हेतु निर्धारित की गई है, किन्तु गज, रथ, चामर सर्व प्रकार के छत्र, बुक्कावाद्य, ताम्रवाद्य, मत्स्य-पताका, जय-विजय के उद्घोष - पूर्वक प्रणाम, पट्टाभिषेक, स्त्री की मण्डलेश्वर पद पर नियुक्ति, हस्ति आदि की सवारी, गीत वाद्य, नृप के साथ भोजन- जलपान आदि करना, विरुदावली ( यशोगाथा - गान), इत्यादि वस्तुएँ मण्डलेश के नहीं होती हैं । पदारोपण - अधिकार में मण्डलेश - पदस्थापना की यह विधि बताई गई है ।
देशमण्डलाधिपति की पदारोपण-विधि -
देशमण्डलाधिपति राजधानी एवं नगर के आधिपत्य से रहित, मात्र कुछ ही ग्रामों का अधिपति होता है तथा ठाकुर के नाम से लोक- प्रसिद्ध होता है। इसकी पदारोपण - विधि मण्डलेश्वर के पदारोपण के समान ही है। देशमण्डलाधिपति का मण्डलेश्वर द्वारा तिलक करने पर भी पदारोपण होता है । ध्वज, वेत्रासन, रथारोहण को छोड़कर उसके शेष सभी उपकरण मण्डलेश्वर के सदृश ही होते हैं। उसे पर्यंकबन्ध (कटिपट्ट बांधने) एवं पर्षदा का अधिकार नहीं होता है और न वह वेत्रासन आदि रख सकता है । देशमण्डलाधिपति को अनुशासित करने की विधि मण्डलेश्वर की भाँति ही है ।
पदारोपण - अधिकार में देशमण्डलाधिपति के पदारोपण की यह विधि बताई गई है ।
ग्रामाधिपति का पदारोपण
ग्रामाधिपति स्व-स्व के ग्राम में ही निवास करते हैं । उसका पदारोपण सामन्त या मण्डलाधिपतियों द्वारा तिलक से नहीं होता है,
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