Book Title: Prayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Author(s): Mokshratnashreejiji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 447
________________ । न के आदिकर्ता (प्रपादनार्थ वेदी एवं कल्याणकारी माना आचारदिनकर (खण्ड-४) 403 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि भगवान् ऋषभदेव द्वारा आदिष्ट है, क्योंकि वे वास्तव में सभी विधि-विधानों के आदिकर्ता (प्रवर्तक) हैं। विवाह-संस्कार विधान में एवं अन्य मांगलिक कार्यों के सम्पादनार्थ वेदी एवं समीपस्थ क्षेत्र की जो भूमि अलंकृत की जाती है, वह आनन्दप्रद एवं कल्याणकारी मानी जाती है और वहाँ पर जिस स्तम्भ तथा कलश की स्थापना की जाती है, वह मंगल के हेतु की जाती है, क्योंकि जल से भरे हुए कुम्भ आदि सर्व मांगलिक शकुन प्रकट करने वाले होते हैं। वैवाहिक-कर्म की वेदिका में जिस अग्नि की स्थापना की जाती है, वह ज्योति या प्रकाश की सूचक है। पुनः, वह ज्योति सर्वतोमुखी तथा सर्वसाक्षी होती है, अर्थात् वह उस वैवाहिक-कर्म की साक्षी भी होती है। वैवाहिक-संस्कार हेतु वेदी में किया गया हवन देवताओं को तृप्त करने का श्रेष्ठ हेतु माना गया है। पुनः, अग्नि शुद्धिकारक होती है, अतः वह मनोभावों की शुद्धि के लिए होती है। अग्नि देवों की आहुति की प्रत्यक्ष ग्राहक मानी गई है। वस्तुतः देवों की संतुष्टि के लिए ही आहुति एवं बलिकर्म का विधान किया जाता है। हवन की गई वस्तु को अग्नि द्वारा भोग कर लेने पर मनुष्यों के चित्त में यह विश्वास उत्पन्न हो जाता है कि वह हवि (आहुति) देवों को प्राप्त हो गई है। विवाह के समय अर्घदान एवं मांगलिक वस्तुओं के समर्पणरूप जो क्रिया सम्पादित की जाती है, उसे पूजा कहते हैं। इसी प्रकार विवाह में जो हस्तमिलाप होता है, वह वर-वधू दोनों के सप्तवचनों की स्वीकृति के लिए होता है। उदुम्बर आदि वृक्षों की छाल का लेप करना, स्त्रियों और पुरुषों के लिए सौभाग्यकारक माना जाता है। दम्पत्ति द्वारा देवताओं की प्रदक्षिणा करना; लाजा, अर्थात् भुने हुए धान की आहुति देना - ये सब कर्म उनके आजन्म सहचारित्व के प्रतीक हैं। इस संस्कार में दम्पत्ति को जो दान दिया जाता है, वह प्रेम अथवा यश प्राप्ति की अपेक्षा से भी दिया जाता है। कन्दर्प के साथ गणिकाओं का जो विवाह होता है, वह उसे सर्व सामान्यकामी मनुष्यों के भोग के योग्य होने का सूचक है। यह विवाह-संस्कार का सार है। व्रतारोपण-संस्कार - व्रतारोपण-संस्कार में नन्दी आदि दीक्षाकर्म प्रशस्त माने गए हैं। सम्यक्त्वारोपण गुरु द्वारा तत्त्वज्ञान की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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