Book Title: Prayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Author(s): Mokshratnashreejiji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 424
________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 380 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि मंत्री की पदारोपण-विधि में मण्डलाधिपति, देशमण्डलाधिपति, ग्रामाधिपति, मंत्री, सेनापति, कर्माधिकारी आदि द्वारा तिलक एवं मुद्रा प्राप्त करने से पूर्व एवं पश्चात् विधिपूर्वक शान्तिक एवं पौष्टिककर्म करें। ___मंत्री-पदारोपण-विधि में नृप के हाथ से मुद्रा एवं वस्त्र आदि की प्राप्ति से ही उसका पदारोपण हो जाता है। उसे नृपादेश एवं प्रसाद से अलंकरण प्राप्त होते हैं, अतः उनके सम्बन्ध में कोई नियम नहीं है। मंत्री को अनुशासित करने की विधि - गुरु उसे सामनीति, कामन्दकनीति, चाणक्यनीति के विस्तृत कथनों से अनुशासित करे। पदारोपण-अधिकार में यह मंत्री-पदारोपण की विधि बताई गई है। सेनापति-पद - सेनापति राजा के सैन्य सम्बन्धी एवं युद्ध सम्बन्धी समस्त कार्यों को कार्यान्वित करने वाला, बद्धपरिकर, अर्थात् अनुचरों से युक्त तथा नृप के प्राण की भाँति होता है। सेनापति के लक्षण - विद्वानों ने निम्न प्रकार के व्यक्तियों को सेनापति-पद के योग्य कहा है - जो शूरवीर हो, मधुरभाषी हो, स्वाभिमानी हो, बुद्धिमान् हो, अनेक बन्धु-बान्धवों से युक्त हो, स्वपक्ष का रक्षक हो, बहुत से नौकरों से युक्त हो, सभी देशों के मार्गों को जानने वाला हो, दाता हो, सौभाग्यशाली हो, वाग्मी हो, विश्वासपात्र हो, शस्त्र-अस्त्र चलाने एवं युद्ध करने में निपुण हो, सेना को सुसज्जित करने में श्रमशील हो। हमेशा प्रमाद से रहित, अर्थात् अप्रमत्त हो एवं सर्वव्यसनों का त्यागी हो। सेनापति-पदारोपण-विधि - नृप द्वारा प्रदत्त वस्त्र, सुवर्ण एवं दण्ड देने से ही सेनापति का पदारोपण हो जाता है। कुछ विद्वान् इस विधि में स्वामी के हाथों से सेनापति को तिलक करने के लिए भी कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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