Book Title: Prayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Author(s): Mokshratnashreejiji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 425
________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 381 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि सेनापति को अनुशासित करने की विधि - शत्रु के बल के अहंकार को तुम स्वबुद्धि एवं बाहुबल द्वारा विनष्ट करना, कभी भी दूसरे पर विश्वास मत करना, दूसरों के मण्डल में प्रवेश करने के बाद कभी भी असावधानी मत रखना तथा परसैन्य अल्प होने पर भी महान् उपक्रम करना। देश, काल, स्वबल, स्वशक्ति, सैन्य-संयोजन और स्वपक्ष - इन षटुगुणों का विचार करके ही शत्रु पर अभियोजन, अर्थात् आक्रमण करना, अन्यथा मत करना। अपने स्वामी को जय प्रदान कराना, स्वयं के प्राणों की रक्षा करना। इस प्रकार की उत्कृष्ट शिक्षा देकर गुरु दण्डनायक (सेनापति) को अनुशासित करता है। पदारोपण- अधिकार में सेनापति-पदारोपण की यह विधि बताई गई है। कर्माधिकारी-पदारोपण-विधि - कर्माधिकारी कितने प्रकार के होते हैं, यहाँ सर्वप्रथम उसका वर्णन है - प्रतिहारी (द्वाररक्षक), कोट्टपति (दुर्गरक्षक), द्रहपति (दुर्ग के चारों ओर रही हुई जलप्रवाही (नहर) का रक्षक), नलरक्षक, शुल्काधिपति, रुप्याधिपति, स्वर्णाधिपति, कारूकाधिपति, अन्तःपुराधिपति, शूद्राधिपति, किंकराधिपति, रथानीकाधिपति, गजानीकाधिपति, तुरंगानीकाधिपति, पदात्यनीकाधिपति, सैन्यसंवाहक, धर्माधिकारी, भांडागारिक, कोष्ठागारिक (भंडारी), पुरोहित, संसप्तक (एक प्रकार का योद्धा) आदि। _उन सभी कर्माधिकारियों के लक्षण इस प्रकार हैं - कुलीन, कुशल, धैर्यवान्, शूरवीर, शास्त्र-विशारद, स्वामीभक्त, धर्म में अनुरक्त, सम्मान एवं वात्सल्य से युक्त, सर्व व्यसनों से मुक्त, पवित्र, लोभ से रहित, सभी पर समान भाव रखने वाला, राजा की वस्तुओं की सुरक्षा करने वाला, पर की अपेक्षा नहीं रखने वाला, गुरुभक्त, मधुरभाषी, उदार, अतिभाग्यवान्, धर्म एवं न्याय में सदा रत रहने वाला, अप्रमत्त, प्रसन्नवदन एवं प्रायः कीर्तिप्रिय भी हो, इस प्रकार के पुरुष कर्माधिकारी- पद के योग्य होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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