Book Title: Prayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Author(s): Mokshratnashreejiji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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आचारदिनकर (खण्ड- -४)
376
प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
स्वपुत्र, स्वजनों को तथा जो तुम्हें माता के समान मानते हैं - ऐसे सभी प्रजाजनों के प्रति समान दृष्टि रखना । दीनों, कर्मचारियों, याचकों, नृप द्वारा निगृहीत अन्य प्राणियों पर हमेशा दया करना। सभी लोकोत्तर एवं लौकिक नियम, पर्वों एवं उत्सवों आदि का आचरण करना। पति के व्यसनग्रस्त होने पर भी मध्यस्थभाव को धारण करना, कोष की रक्षा करना तथा सुकृत में धन का व्यय करना। यात्रियों, साधुओं, विद्वानों, गुणिजनों, राजाओं, हतभागियों का विशेष रूप से पालन करना तथा अवरोध करने वाले लोगों का पालन करना और उन पर शासन करना । विरोधीजनों द्वारा लाया गया भोजन शंकित मन से तथा सम्यक् प्रकार से परीक्षण करके खाना । रसवती, अर्थात् भोजन बनाने सम्बन्धी कार्यों में सदा प्रयत्न करना । पृथ्वी पर सर्वोत्तम दान देकर विपुल यश को प्राप्त करना । अपने सम्पूर्ण पत्नीमण्डल का, अर्थात् राजा की सभी रानियों का सास की तरह परिपालन करना, उनकी सन्तानों का भी स्वपुत्र के समान ही करुणाभाव से पोषण
करना ।
कभी भी अत्यंत विषयासक्ति मत रखना, राज्य एवं व्यापार के सम्बन्ध में सदैव खेदित मत रहना, परस्पर अविरोधपूर्वक त्रिवर्ग की साधना करना इत्यादि शिक्षा देकर गुरु राज्ञी को अनुशासित करे । राज्ञी के उपकरण इस प्रकार हैं चामर, स्वर्णकलश, छत्र, शिखि (वेणी), मोतियों का हार, पाँच शिखर वाला मुकुट, अद्वितीय वेत्रासन। राज्ञी के चलते समय दोनों तरफ चामर दुलाए जाते हैं । नृपति की भाँति उसके आगे मत्स्य- पताका और राज्यहस्ती चलता है तथा गीत एवं वाद्य बजते हैं ।
इस प्रकार पदारोपण - अधिकार में राज्ञी ( पटरानी) के पदारोपण की यह विधि बताई गई है।
सामन्त- पदारोपण
सामन्त नृपति का सहोदर तथा राज्य के भूमि-भाग का शासक या अधिपति होता है । इस प्रकार वह राजकुल का ही व्यक्ति होता है, अथवा किंचित् भूमण्डल का स्वामी और विरुद का धारक होता है । एक मध्यस्थ के रूप में
राज ( युवराज ) राज्य के सात
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