Book Title: Prayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Author(s): Mokshratnashreejiji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 421
________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 377 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि अंगों को धारण करने वाला होता है। मुद्रा, श्वेतछत्र आदि चिन्हों से रहित एवं महाभूपति की आज्ञा को धारण करने वाले (आज्ञानुवर्ती) को सामन्त कहते हैं। उसकी पदारोपण- विधि इस प्रकार है। सामन्त की पदारोपण-विधि में अपेक्षित वस्तुओं की सूची इस प्रकार है - सिंहासन, श्वेतछत्र, स्वर्णकलश, इन्द्रध्वज, बुक्का, सिंहनाद, श्वेतकाठी, रक्तपट का मण्डप एवं मुद्रा को छोड़कर शेष सभी वस्तुएँ (चिह्न) राजा के पदारोपण समान ही इसमें भी आवश्यक होती हैं। सामन्त का अभिषेक नहीं होता, मात्र स्वगुरु, पिता, भगिनी और तत्पश्चात् महाभूपति के हाथ से उसका तिलक होता है। इस तिलक का मंत्र पूर्ववत् ही है। सामन्त को दी जाने वाली शिक्षा, अर्थात् अनुशास्ति भी नृपति-शिक्षा के समान ही है, किन्तु यहाँ स्वदेश के राजा की अपेक्षा से इतना विशेष कहा जाता है - "तुम कभी भी नृपति की आज्ञा का खण्डन मत करना, अत्यन्त बलिष्ठजनों से कभी भी वैर मत बढ़ाना, अर्थात् उनका विरोध मत करना।" उसकी सामग्री इस प्रकार है - चतुरंग सेना, श्वेतपट का मण्डप, वेत्रासन, चामर, छत्र, कलंगी, मोतियों की माला। कुछ विद्वान् सामन्तों के लिए महाभूपति द्वारा समर्पित रक्त एवं श्वेतछत्र धारण करने के लिए कहते हैं। बुक्का वाद्य को एवं श्वेतअश्व काठी को छोड़कर मत्स्यध्वज आदि सभी वस्तुएँ उसके प्रासाद के आगे भी होती है। स्वमण्डल में उसी की आज्ञा चलती है तथा उसके सिर पर चाँदी का पाँच कलगी वाला मुकुट होता है। सामन्त की पत्नी का भी पदारोपण सामन्त के पदारोपण की भाँति होता है तथा उसकी शिक्षा-विधि भी सामन्त की शिक्षा-विधि के सदृश ही है। छत्र, चामर को छोड़कर सामन्त की पत्नी के शेष सभी उपकरण सामन्त की भाँति ही होते हैं। पदारोपण-अधिकार में सामन्त-पदारोपण की यह विधि बताई गई है। मण्डलेश्वर का पदारोपण - ___ मण्डलेश्वर कुछ नगर एवं ग्रामों का अधिपति होता है, महानृप एवं सामन्त की आज्ञा को धारण करने वाला होता है तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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