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आचारदिनकर (खण्ड-४)
343 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि आयतिजनक-तप, आगाढ़, (इसमें निरन्तर ३२ आयम्बिल करे) | आं. आं. | आं. आं. आं. आं. | आं. आं. आं. आं. आं. आं. आं. आं. आं. आं. | १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १
आं. आं. आं. आं. आं. आं. आं. आं. आं. | आं. | आं. आं. आं.आं. आं. आ. | | १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ ७०. अक्षयनिधि तप -
अब अक्षयनिधि-तप की विधि बताते हैं - “घटं संस्थाप्य देवाग्रे गन्धपुष्पादिपूजितं।
तपो विधीयते पक्षं, तदक्षयनिधिः स्फुटं ।।१।। अक्षयनिधि अक्षयभंडार की तरह होने से इस तप को अक्षयनिधि-तप कहते हैं। इस तप को भाद्रपद वदि (कृष्ण पक्ष) चतुर्थी को प्रारम्भ करे। उस दिन जिनेश्वरदेव की प्रतिमा के आगे गाय के गोबर से भूमि को शुद्ध करके तथा उस पर गँहुली करके स्वर्ण, मणि, मुक्ताफल, सुपारी आदि से गर्भित घट की स्थापना करे। तत्पश्चात् एक पक्ष तक उसकी नित्य पूजा करे। जिनेश्वर परमात्मा को तीन प्रदक्षिणा करके कुंभ में अंजलि भर अक्षत प्रतिदिन डाले। कुंभ के पास नैवेद्य रखे। प्रतिदिन अपनी शक्ति के अनुसार बियासन, एकासन आदि का प्रत्याख्यान करे एवं नृत्यगीतोत्सव आदि करते हुए पर्युषणपर्यंत यह तप करे - इस तरह यह तप चार वर्ष में पूर्ण होता
है।
इस तप के उद्यापन में बृहत्स्नात्रविधिपूर्वक विविध जाति के पकवान आदि परमात्मा के समक्ष रखे। साधर्मिकवात्सल्य एवं संघपूजा करे। इस तप को करने से सम्पत्ति की प्राप्ति होती है। अक्षयनिधि-तप की दूसरी विधि -
____ अक्षत की मुष्टि प्रतिदिन कुंभ में डाले, जितने दिन में कुंभ भरे उतने दिन तक प्रतिदिन एकासन-तप करे। यह श्रावकों को करने योग्य आगाढ़-तप है। इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है -
अक्षयनिधि-तप, भाद्रपद वदि चतुर्थी से सुदि चतुर्थी तक |तिथि च. | प. | ष. स. | अ. | न. | द. | ए. द्वा. त्र. | च. अ. ए. | द्वि. तृ. च. | तप | ए. ए. ए. | ए. ए. ए. ए. | ए. | ए. | ए. ए. ए. ए. ए. ए. | ए.
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