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आचारदिनकर (खण्ड-४)
356 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि उपवास करे, फिर अन्त में निरन्तर तीन उपवास करे। इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है -
कर्मचूर्ण-तप, आगाढ़ , कुल दिन-१२८ उ. ३ | पा. | उ. | ए. उ. | ए. उ. | ए. उ. ए. उ. ए. | उ. | उ. | ए. उ. ए. उ. | ए. उ. ए. उ. | ए. उ. | ए. | उ. | ए.] ए. उ. ए. उ. ए. उ. | ए. उ. ए.
उ. ए.
| उ. ए. उ. ए. | उ. ए.| उ. | ए. | उ. | ए. | उ. | ए. उ. ए. उ. ए. उ. ए. | उ. ए. उ. | ए. उ. ए. उ. | ए. उ.
उ. ए. उ. ए. उ. ए. उ. ए. उ. ए. उ. ए. उ. ए. | उ. | ए. | उ. ए. | उ. ए. | उ./ए. उ. | ए. | उ. | ए. | उ. ए.
उ. ए. | उ. ए. उ. ए. उ. ए. उ. ए. उ. ए. उ. ए. उ. ए. उ. ए. उ. ए. उ. ए. उ. ए. उ. ३ ए.
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9. नमस्कारका के करने इस तप के परमात्मा के
इस तप के उद्यापन में बृहत्स्नात्रविधिपूर्वक चाँदी का वृक्ष बनवाकर तथा स्वर्ण की कुल्हाड़ी बनवाकर परमात्मा के समक्ष रखे। संघवात्सल्य एवं संघपूजा करे। इस तप के करने से कर्मों का क्षय होता है। यह श्रावकों के करने योग्य आगाढ़-तप है। ८७. नमस्कारफल-तप -
नमस्कारफल-तप की विधि इस प्रकार हैं - “कृत्वा नवैकभक्तानि तदुद्यापनमेव च।
शक्तिहीनैर्निधेयं च पूर्ववत्तत्समापनम् ।।" नमस्कार का फल देने वाला होने से इसे नमस्कारफल-तप कहते हैं। इस तप में शक्तिहीन मनुष्य, जो ६८ एकासन करने में असमर्थ है, उनसे नमस्कार-मंत्र के पद के नमस्कारफल-तप अनुसार नौ एकासन करना चाहिए। इस तप नमो अरिहंताणं के यंत्र का न्यास इस प्रकार है -
नमो सिद्धाणं
नमो आयरियाणं | ए. इस तप के उद्यापन की सम्पूर्ण विधि
नमो उवज्झायाणं पूर्व में बताए गए (अर्थात् तपसंख्या ३५ में नमो लोए सब्बसाहूणं | ए. बताए गए) अनुसार करे। इस तप को करने एसो पंच नमुक्कारो ए. से प्राप्त होने वाला फल भी पूर्ववत् ही है।
सव्वपावप्पणासणो
| मंगलाणंचसव्वेसिं ए. यह श्रावकों के करने योग्य आगाढ़-तप है। । पढम हवइ मंगलं | ए. |
कार-मंत्र
नौ एकासन
के
ए. ए.
ए.
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