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आचारदिनकर ( खण्ड - ४)
359 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि नंद्यावर्त्त की आराधना के लिए जो तप किया जाता है, उसे नंद्यावर्त्त - तप कहते हैं । इस तप में सर्वप्रथम नंद्यावर्त्त की आराधना के लिए उपवास करे। तत्पश्चात् धरणेन्द्र, अंबिका, श्रुतदेवी एवं गौतमस्वामी की आराधना के लिए चार आयम्बिल करे। फिर पंचपरमेष्ठी एवं रत्नत्रय की आराधना के लिए आठ आयम्बिल करे । इसी प्रकार सोलह विद्यादेवियों की आराधना के लिए सोलह एकासन, चौबीस शासन-यक्षिणियों की आराधना के लिए चौबीस एकासन, दस दिक्पालों की आराधना के लिए दस एकासन, नवग्रह तथा क्षेत्रपाल इन दस की आराधना के लिए दस एकासन तथा चार निकाय के देवों की आराधना के लिए एक उपवास करे इस तरह दो उपवास, बारह आयम्बिल, चौंसठ एकासनपूर्वक सब मिलाकर ७८ दिनों में यह तप पूरा होता है ।
इस तप के उद्यापन में जिनालय में बृहत्स्ना विधिपूर्वक परमात्मा की पूजा करे तथा पूर्व की भाँति उपाश्रय में लघुनंद्यावर्त्त पूजा करे। संघवात्सल्य एवं संघपूजा करे। इस तप के करने से परलोक सम्बन्धी तीर्थंकर नामकर्म का बंध होता है तथा इहलोक में सर्वदेवों का सान्निध्य प्राप्त होता है । श्रावक के करने योग्य आगाढ़ - तप हैं ।
यह तप साधु' एवं
लघुनंद्यावर्त्त-तप, आगाढ़, नाम नंद्या. धरणेन्द्र अंबिका श्रुतदेवी गौतम परमेष्ठी
कुल दिन - ७८ सोलह | चौबीस एवं विद्या शासन दिक्पाल एवं रत्नत्रय देविया. यक्ष.
१६ ए. २४ ए. १० ए.
तप उप. १ आं. १ आं. १ आं. १ आं. ८ आं.
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इस प्रकार उपर्युक्त तप फल की आकांक्षा से किए जाने वाले तप हैं। इस तरह तीनों प्रकार के तपों की यह विधि सम्पूर्ण होती है ।
दस नवग्रह चार
निकाय क्षेत्रपाल | के देव
१० ए. १ उप.
मूलग्रन्थ में यह तप साधुओं के लिए भी करणीय हैं, ऐसा निर्देश दिया गया है, हमारी दृष्टि में पूर्व कारणों के अनुसार यह अनुचित हैं, अतः यह तप श्रावकों के लिए ही करणीय होना चाहिए ।
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