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आचारदिनकर (खण्ड-४)
352 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि दिन आयम्बिल आदि तप द्वारा करे। इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है -
अमृताष्टमी-तप, आगाढ़ | पक्ष । तिथि | तप पक्ष तिथि तप / पक्ष । तिथि | तप | | शुक्ल ८ | उप. शुक्ल ८ उप. शुक्ल ८ । उप. | | शुक्ल ८ उप. शुक्ल ८ उप. शुक्ल ८ उप. | शुक्ल ८ उप. शुक्ल ८ उप..
इस तप के उद्यापन में बृहत्स्नात्रविधि पूर्वक घृत तथा दूध से भरे हुए दो कलश तथा एक मन का मोदक परमात्मा के आगे रखे। संघवात्सल्य एवं संघपूजा करे। इस तप के करने से आरोग्य की प्राप्ति होती है। यह श्रावकों को करने योग्य आगाढ़-तप है। ६३. अखण्डदशमी-तप -
अखण्डदशमी-तप की विधि इस प्रकार है - "शुक्लासु दशसंख्यासु, निजशक्त्या तपोविधिम् ।
विदधीत ततः पूर्तिस्तस्य संपद्यते क्रमात् ।।१।।" दशमी के दिन अखण्डित धारापूर्वक जो तप किया जाता है, उसे अखण्डदशमी तप कहते हैं। इस तप में शुक्लपक्ष की दशमी के दिन अपनी शक्ति के अनुसार एकासन आदि तप करे। इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है - इस तप के उद्यापन में | पक्ष । तिथि | तप | पक्ष । तिथि तप
शुक्ल १० | उप. शुक्ल | १० | उप. दस-दस पकवान, फल
।
आदि
आदि शुक्ल १० उप. | शुक्ल | १० | उप.] परमात्मा के आगे रखे। अखण्ड | शुक्ल | १० / उप. | शुक्ल | १० | उप. अक्षतपूर्वक (स्वस्तिक बनाकर) | शुक्ल | १० | उप. | शुक्ल | १० | उप. नैवेद्य रखे। अखण्ड वस्त्र पहनकर चैत्य की भमती में घी की तीन अखण्ड धारा दे। संघवात्सल्य एवं संघपूजा करे। इस तप के करने से अखण्ड सुख की प्राप्ति होती है। यह श्रावकों के करने योग्य आगाढ़-तप है।
अखण्डद
प,
आगाढ़
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