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आचारदिनकर (खण्ड-४)
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प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि आठ कवल का एकासन करे - इसी प्रकार अन्य कर्मों की भी ८-८ दिन की ओलियाँ करे । यह तप चौंसठ दिन में पूरा होता है । इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है
कर्मसूदन - तप: आगाढ़ तप
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ए. सि. एग.
ए. द.
नी.
आं.
एग.
ए. द.
नी.
आं.
एग.
ए. द.
नी.
आं.
एग.
ए. द.
नी.
आं.
एग.
ए. द.
नी.
आं.
एग.
ए. द.
नी.
आं.
ए. द. नी. आं.
नाम
गोत्र
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ज्ञानावरण उप. दर्शनावरण उप. ए. सि.
वेदनीय उप. ए. सि.
मोहनीय उप. ए. सि.
आयुष्य उप. ए. सि.
उप.
ए. सि.
अन्तराय
ए. द. नी. आं.
आठ कवल
उप. ए. सि. एग. उप. ए. सि. एग. इस तप के उद्यापन में सोने की कुल्हाडी सहित चाँदी का वृक्ष तथा चौंसठ मोदक ज्ञान के आगे रखे। बृहत्स्ना विधि से परमात्मा की स्नात्रपूजा करे तथा संघपूजा करे । इस तप के फल से कर्मों का क्षय होता है । यह तप साधु एवं श्रावक के करने योग्य आगाढ़ तप है । इस प्रकार जिनेश्वरों द्वारा भाषित साधु एवं श्रावक के करने योग्य तप की विधि सम्पूर्ण होती है ।
गृहस्थों को इस तप के उद्यापन में तपविधि में बताए गए अनुसार करना चाहिए। साधुओं ने तपस्या की हो, तो उसका उद्यापन श्रावक से कराना चाहिए, अथवा ऐसा संभव न हो, तो मानसिक उद्यापन करना चाहिए । जो तप अन्तराल से किया जाए, वह अनागाढ़-तप कहलाता है और जो लगातार श्रेणीबद्ध किया जाए, वह आगाढ़-तप कहा जाता है - ऐसा जिनेश्वरों ने कहा है । ऊपर बताए गए सभी तप जिनेश्वरों द्वारा बताए गए हैं ।
अब गीतार्थों द्वारा बताई गई तप - विधि बताते है, जो इस
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आठ कवल
आठ कवल
आठ कवल
आठ कवल
आठ कवल
आठ कवल
आठ कवल
प्रकार है
जिस दिन तीर्थंकर भगवंत का गर्भावतार ( च्यवन), जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और मोक्ष हुआ हो, उस दिन जो तप किया जाए, वह कल्याणक-तप कहलाता है । जिस दिन एक कल्याणक हो, उस
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