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आचारदिनकर (खण्ड- -४)
प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
स्त्रियों का आहार अट्ठाईस कवल का होता है, इसलिए उनके लिए पाँच प्रकार की ऊनोदरिका इस प्रकार समझनी चाहिए
मध्यम
३.
एक से सात ग्रास तक अल्पाहारा, आठ से ग्यारह ग्रास तक अपार्धा, बारह से चौदह ग्रास तक द्विभागा, पन्द्रह से इक्कीस ग्रास तक प्राप्ता, तथा बाईस से सत्ताईस ग्रास तक किंचिदूना - ऊनोदरिका ये पाँचों भी जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट इन तीन भेदों से इस प्रकार हैं- १. अल्पाहार - ऊनोदरिका - एक तथा दो ग्रास से जघन्य; तीन, चार तथा पाँच ग्रास से मध्यम और छः तथा सात ग्रास से उत्कृष्ट । २. अपार्धा-ऊनोदरिका आठ ग्रास से जघन्य, नौ ग्रास से और दस तथा ग्यारह ग्रास से उत्कृष्ट । द्विभागा-ऊनोदरिका-बारह ग्रास से जघन्य, तेरह ग्रास से मध्यम और चौदह ग्रास से उत्कृष्ट । ४. प्राप्ता - ऊनोदरिका - पंद्रह तथा सोलह ग्रास से जघन्य, सत्तरह, अठारह एवं उन्नीस ग्रास से मध्यम और बीस एवं इक्कीस ग्रास से उत्कृष्ट तथा ५. किंचिदूना - ऊनोदरिका - बाईस और तेईस ग्रास से जघन्य, चौबीस एवं पच्चीस ग्रास से मध्यम तथा छब्बीस एवं सत्ताईस ग्रास से उत्कृष्ट समझनी चाहिए। इस प्रकार पन्द्रह दिन में यह तप पूरा होता है । यह द्रव्य - ऊनोदरिका है 1 भाव - ऊनोदरिका आगम में इस प्रकार बताई गई है “कोहाइ अणुदिणं चाओ जिणवयण भावणाओ अ ।
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भावोणोदरिया वि हु पन्नत्ता वीयराहिं । ।१ । । “
अर्थात् निरंतर क्रोधादि का त्याग करना तथा जिनेश्वर के वचनों की भावना भाना यह भाव - ऊनोदरिका है, जो वीतराग ने
बताई है।
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लोकप्रवाह - ऊनोदरिका इस प्रकार है- प्रथम दिन आठ कवल, दूसरे दिन बारह, तीसरे दिन सोलह, चौथे दिन चौबीस तथा पाँचवें दिन एकतीस ग्रास लेने चाहिए । स्त्रियों को प्रथम दिन सात, दूसरे दिन ग्यारह, तीसरे दिन चौदह, चौथे दिन इक्कीस तथा पाँचवें दिन सत्ताईस ग्रास लेना चाहिए । इस प्रकार यह तप पाँच दिन में पूरा होता है ।
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