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आचारदिनकर (खण्ड-४)
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प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
प्राप्ति होती है । यह तप साधुओं एवं श्रावकों के करने योग्य
आगाढ़-तप है ।
भद्रतप, आगाढ़, दिन- १००
उपवास १ पारणा उपवास २ पारणा उपवास ३ पारणा उपवास ४ पारणा उपवास ५ पारणा उपवास ३ पारणा उपवास ४ पारणा उपवास ५ पारणा उपवास १ पारणा उपवास २ पारणा उपवास ५ पारणा उपवास १ पारणा उपवास २ पारणा उपवास ३ पारणा उपवास ४ पारणा उपवास २ पारणा उपवास ३ पारणा उपवास ४ पारणा उपवास ५ पारणा उपवास १ पारणा उपवास ४ पारणा उपवास ५ पारणा उपवास १ पारणा उपवास २ पारणा उपवास ३ पारणा २८. महाभद्रतप
अब महाभद्र-तप की विधि बताते हैं “एकद्वित्रिचतुः पंचषट्सप्तभिरूपोषणैः ।
निरन्तरैः पारणकमाद्य श्रेणौ प्रजायते ।। १ ।। द्वितीय पाल्यां वेदेषुषट्सप्तैकद्विवान्हीभः ।
तृतीय पाल्यां सप्तैकद्वित्रिवेदशरै रसैः ।।२ ।। चतुर्थ पाल्यां त्रिचतुः पंचषट्सप्तभूभुजैः ।
पंचम्यां रससप्तैकद्वित्रिवेदशिलीमुखैः ।। ३ ।। षष्ठम्यां द्वितिचतुःपंचषट्सप्तैकैरूपोषणैः ।
सप्तम्यां पंचषट्सप्तभूयुग्मत्रिचतुष्टयै । ।४ ।। एवं संपूर्यते सप्त श्रेणिभिर्मध्यपारणैः ।
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महाभद्रं तपः सप्तप्रस्तार परिवारितम् । । ५ । ।" यह तप महाभद्र, अर्थात् महाकल्याणकारी होने से महाभद्र - तप कहलाता है । इस तप की प्रथम श्रेणी में एक, दो, तीन, चार, पाँच, छः और सात उपवास अनुक्रम से अंतररहित पारणे वाले करे। दूसरी श्रेणी में चार, पाँच, छः, सात, एक, दो और तीन उपवास अंतररहित पारणे से करे। तीसरी श्रेणी में सात, एक, दो, तीन, चार, पाँच और छः उपवास उसी तरह से करे । चौथी श्रेणी में तीन, चार, पाँच, छः, सात, एक और दो उपवास अंतररहित पारणे से करे। पाँचवीं श्रेणी में छः, सात, एक, दो, तीन, चार और पाँच उपवास अंतररहित पारणे से करे । छठवीं श्रेणी में दो, तीन, चार, पाँच, छः, सात और एक उपवास अंतररहित पारणे से करे। सातवीं श्रेणी में पाँच, छः, सात,
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