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आचारदिनकर (खण्ड-४) 325 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
इस तप के उद्यापन में बृहत्स्नात्रविधि से परमात्मा की पूजा करे। संघवात्सल्य तथा संघपूजा करे। इस तप के करने से विशुद्ध धर्म की प्राप्ति होती है। यह तप साधुओं एवं श्रावकों - दोनों को करने योग्य आगाढ़-तप है। इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है -
यतिधर्म-तप, आगाढ़ ४७. पंचपरमेष्ठी-तप -
क्षान्ति | उ. १ पा. अब पंचपरमेष्ठी-तप की विधि बताते हैं- । मार्दव । उ. १ | पा.
आर्जव | उ. १ पा. "उपवासैकस्थाने आचाम्लैकाशने च
मुक्ति | उ. १ पा. निर्विकृतिः।
प्रतिपरमेष्ठी च षटकं प्रत्याख्यानस्य भवतीदम् ।।
शौच पंचपरमेष्ठी की आराधना के लिए जो
आंकिचन्य उ. १ पा. | तप किया जाता है, उसे पंचपरमेष्ठी-तप कहते | ब्रह्मचर्य | उ. १ पा. हैं। प्रथम परमेष्ठी के लिए प्रथम दिन उपवास, दूसरे दिन एकासन, तीसरे दिन आयम्बिल, चौथे दिन एकासन, पाँचवें दिन नीवि, छठवें दिन पूर्वार्द्ध और सातवें दिन आहार में आठ ग्रास ग्रहण करे - इसी प्रकार शेष चार परमेष्ठियों की आराधना के लिए करे - इस तरह पच्चीस दिनों में यह तप पूरा होता है।
इस तप के उद्यापन में ज्ञानपंचमी की भाँति ही पाँच-पाँच पुस्तकें आदि परमात्मा के समक्ष रखे। संघवात्सल्य एवं संघपूजा करे। इस तप के करने से सर्व विघ्नों का क्षय होता है। यह तप साधुओं एवं श्रावकों के करने योग्य आगाढ़-तप है। इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है -
तप | उ. १ संयम | उ. १ सत्य | उ.१
| उ. १
पा. पा. पा. पा.
पंचपरमेष्ठी-तप, आगाढ़ नमो अरिहंताणं उ. | ए. ] आं. | ए. नी. | पु. | आठ कवल
नमो सिद्धाणं | उ. | ए. | आं. ए. | नी. | पु. | आठ कवल नमो आयरियाणं | उ. | ए. | आं. | ए. |
आठ कवल नमो उवज्झायाणं | उ. | ए. | आं. ए. नी.
आठ कवल नमो लोए सव्व साहूणं | उ. | ए. | आं. | ए. | नी.
आठ कवल
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