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आचारदिनकर (खण्ड-४)
331 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि करे। इस तप से महाऋद्धि की प्राप्ति होती है। यह साधु एवं श्रावकों - दोनों को करने योग्य आगाढ़-तप है। इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है -
वर्ग-तप, आगाढ़, दिन संख्या - १६० | उ.] १ पा. २ पा. १ पा. २ पा. | २ | पा.| १ | पा. पा. | १ | | उ. | १ | पा. | २ | पा. | २ | पा. १ पा. | २|पा. १ | पा. | २ | पा. १ | | उ. २ पा. १ पा. २ पा. १ पा. १ पा. २ पा. १ पा. २ उ. | २ पा. १ | पा. १ पा. | २ | पा. १ पा. २ पा. | १ | पा. २
उ. १ पा. | २ | पा. १ पा. | २ | पा. २ पा. | १ पा. १ | पा. २ | उ. १ पा. २ पा. १ पा. २ पा. २ पा. १ पा. २ पा. १ | उ.| २ | पा. १ | पा. | २ | पा. १ | पा. | १ | पा. २ | पा. २ पा. १ | उ. २ | पा. १ | पा. २ | पा. १ | पा.| २ | पा. १ | पा. पा.१|
५४. श्रेणी-तप -
अब श्रेणी-तप की विधि बताते हैं - “श्रेणौ षट्श्रेणयः प्रोक्ता, एको द्वौ प्रथमे क्षणे।
द्वितीयादिषु चैकांकक्रमवृद्धयाऽभिजायते।।१।।" श्रेणी के अंकों द्वारा जो तप किया जाता है, उसे श्रेणी-तप कहते हैं। इस तप की प्रथम श्रेणी में सर्वप्रथम एक उपवास करके पारणा करे। फिर दो उपवास करके पारणा करे। दूसरी श्रेणी में प्रथम एक उपवास करके पारणा करे, फिर दो उपवास करके पारणा करे
और फिर तीन उपवास करके पारणा करे। तीसरी श्रेणी में एक, दो, तीन और चार उपवास एकान्तर पारणे से करे। चौथी श्रेणी में एक, दो, तीन, चार और पाँच उपवास एकान्तर पारणे से करे। पाँचवीं श्रेणी में एक, दो, तीन, चार, पाँच और छः उपवास एकान्तर पारणे से करे। छठवीं श्रेणी में एक, दो, तीन, चार, पाँच, छः और सात उपवास एकान्तर पारणे से करे। इस तरह छहों श्रेणियों के ८३ उपवास के दिन और २७ पारणे के दिन - कुल ११० दिनों में यह तप पूरा होता है।
इस तप के उद्यापन में ११०-११० पकवान, फल, पुष्प वगैरह बृहत्स्नात्रविधिपूर्वक परमात्मा के आगे चढाए। साधर्मिकवात्सल्य एवं संघपूजा करे। इस तप के करने से क्षपकश्रेणी प्राप्त होती है। यह तप
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