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आचारदिनकर (खण्ड-४) 338 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
माघ माह में मालारूप में करने वाले तप को माघमाला-तप कहते हैं। पौष वदि (कृष्ण पक्ष) दशमी (खरतरगच्छ के अनुसार माघ वदि (कृष्ण पक्ष) दशमी) के दिन से आरम्भ करके माघ सुदी (शुक्ल पक्ष) पूर्णिमा तक यह तप करे। इस तप में नित्य स्नान करके अरिहंत की पूजा कर निरंतर एकासन करे - इस प्रकार चार वर्ष तक यह तप करे।
इस तप के उद्यापन में बृहत्स्नात्रविधिपूर्वक स्वर्ण और मणिगर्भित घृत का मेरु बनाकर परमात्मा के आगे रखे। संघवात्सल्य एवं संघपूजा करे। इस तप के करने से परमसुख की प्राप्ति होती है। यह तप साधुओं एवं श्रावकों के करने योग्य आगाढ़-तप है। इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है -
माघमाला-तप, आगाढ प्रथम वर्ष में पौष वदि दशमी से माघ सुदी पूनम
तीसरे एवं चौथे वर्ष में भी करे
६३. महावीर-तप -
अब महावीर-तप की विधि बताते हैं - "महावीर तपो ज्ञेयं, वर्षाणि द्वादशैव च।
त्रयोदशैव पक्षाश्च, पंचकल्याण पारणे।।१।। श्री महावीरस्वामी ने छद्मस्थ अवस्था में जो तप किया, वह महावीर-तप कहलाता है। इसमें बारह वर्ष और तेरह पक्ष, अर्थात् साढ़े छः मास तक निरन्तर दस-दस उपवास पर पारणा करके यह तप पूर्ण करे।
इस तप के उद्यापन में बृहत्स्नात्रविधिपूर्वक महावीरस्वामी की प्रतिमा के आगे स्वर्णमय वटवृक्ष रखे। साधर्मिकवात्सल्य एवं संघपूजा करे। इस तप के करने से कर्मों का क्षय होता है। यह तप साधु एवं श्रावक - दोनों के करने योग्य आगाढ़-तप है।
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