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आचारदिनकर (खण्ड-४) 340 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
जिस तप को करने से सम्पूर्ण अंग सुन्दर हो, वह सर्वांगसुन्दर-तप कहलाता है। इसमें प्रथम शुक्लपक्ष की प्रतिपदा के दिन उपवास करके पारणे में आयंबिल करे। फिर उपवास करके
आयंबिल करे - इस प्रकार आठ उपवास और सात आयंबिल कर पन्द्रह दिन में यह तप पूर्ण करे। शक्ति के अनुसार क्षमा, संयमादि दस प्रकार के धर्मों का पालन करे तथा कषाय का त्याग करे।
पूर्णिमा के दिन इस तप का उद्यापन करे। बृहत्स्नात्रविधि से पूजा करके परमात्मा के आगे रत्नजड़ित स्वर्णमय पुरुष रखे। संघवात्सल्य एवं संघपूजा करे। इस तप के करने से सर्वांग सुन्दरता की प्राप्ति होती है। यह श्रावकों के करने योग्य आगाढ़-तप है। इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है -
| सर्वांगसुन्दर-तप, आगाढ़, दिन-१५, पारणा प्रतिपदा में, शुक्लपक्ष में प्रारम्भ |
शुक्ल | प्र. | द्वि. | तृ. | च. | पं. | ष. | स. | अ. | न. | द. | ए. | द्वा. त्र. | च. | पू. तिथि
उ. | आ. | उ. | आ. | उ. आ. उ. आ. | उ. | आ. | उ. | आ. | उ. | आ. | उ. |
६६. नीरूजशिख-तप -
अब नीरूजशिख-तप की विधि बताते हैं - "तपोनीरूजशिखाख्यं विधेयं तद्वदेव हि।
नवरं कृष्ण पक्षे तु करणं तस्य शस्यते।।१।।" नीरूज, अर्थात् रोगरहित जिसकी शिखा है, अर्थात् चूड़ा है, वह नीरूजशिख-तप कहलाता है। यह तप भी सर्वांगसुन्दर-तप की भाँति ही किया जाता है। यहाँ इतना विशेष है कि यह तप कृष्णपक्ष में किया जाता है। इस तप के करने से आरोग्य की प्राप्ति होती है। यह तप श्रावकों को करने योग्य अनागाढ़-तप है। (उद्यापन-विधि पूर्व वर्णित तपवत् है।) इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है -
| कृष्ण तिथि
नीरूजशिख-तप, आगाढ़, दिन-१५, कृष्णपक्ष प्रतिपदा से अमावस्या तक । प्र. | द्वि. तृ. | च.| पं. | ष. | स. अ.न. द. ए. द्वा. त्र. | च. अमा.
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