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आचारदिनकर (खण्ड-४)
329 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
इस तप के उद्यापन में बृहत्स्ना विधिपूर्वक पूजा करके उपवास की संख्या के अनुसार, अर्थात् बारह-बारह फल, पुष्प एवं नैवेद्य आदि परमात्मा के आगे चढ़ाए, साधर्मिकवात्सल्य एवं संघपूजा करे । इस तप के करने से महालक्ष्मी (मोक्ष) की प्राप्ति होती है । यह तप साधुओं एवं श्रावकों दोनों के करने
योग्य आगाढ़ - तप है। इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है
५२. महाघन - तप
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उ. २
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इस तप के उद्यापन में बृहत्स्नात्रविधि से पूजा करके इक्यासी - इक्यासी पुष्प, फल, नैवेद्य आदि चढ़ाए। साधर्मिकवात्सल्य एवं संघपूजा करे । इस तप को करने से चक्रवर्ती की ऋद्धि प्राप्त होती है । यह
अब महाघन - तप की विधि बताते हैं " महाघनतपः श्रेष्ठं एकद्वित्रिभिरेव हि । उपवासैर्नवकृत्वः पृथक श्रेणिमुपागतैः । । १ । । “
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विविध संख्या की बाहुल्यता से यह महाघन - तप कहलाता है। इस तप की प्रथम श्रेणी में एक-दो-तीन उपवास एकान्तर पारणे से करे । द्वितीय श्रेणी में दो-तीन - एक उपवास एकान्तर पारणे से करे । तृतीय श्रेणी में तीन- दो-एक उपवास एकान्तर पारणे से करे । चौथी श्रेणी में दो-तीन - एक उपवास एकान्तर पारणे से करे । पाँचवीं श्रेणी में तीन - एक-दो उपवास एकान्तर पारणे से करे। छठवीं श्रेणी में एक-दो-तीन उपवास एकान्तर पारणे से करे। सातवीं श्रेणी में दो-तीन - एक उपवास एकान्तर पारणे से करे। आठवीं तीन - एक-दो उपवास एकान्तर पारणे से करे। नवीं दो-तीन - एक उपवास एकान्तर पारणे से ५४ उपवास और २७ पारणे होते हैं तथा कुल दिन ८१ होते हैं ।
श्रेणी में
श्रेणी में
करे। इस प्रकार इस तप में
घन-तप, आगाढ़
पा.
पा.
पा.
पा.
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उ. २ पा.
उ. २
पा.
उ. १
पा.
उ. १ पा.
महाघन - तप, आगाढ़
उ. ३ पा.
उ. १ पा.
उ. १ पा. उ. २ पा. उ. २ पा. उ. ३ पा. उ. ३ पा. उ. १ पा. उ. २ पा. उ. ३ पा. उ. १ पा.
उ. २ पा.
उ. १ पा.
उ. ३ पा.
उ. २ पा.
उ. १ पा.
उ. २ पा.
उ. ३ पा.
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उ. ३ | पा.
उ. १ पा.
पा. पा.
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उ. १ पा. उ. २ पा.
उ. २ पा.
उ. ३ पा. उ. १ पा.
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