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आचारदिनकर (खण्ड-४)
भावार्थ
इक्कं किर छम्मासं दो किर तेमासिए उवासीय । अड्डाइज्जाई दुवे दो चेव दुविमासाई || २ || भद्दं च महाभद्दं पडिमं तत्तो अ सव्वओ भद्दं ।
299 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
दो चत्तारि दसेव य दिवसे ठासी अ अणुबद्धं । । ३ । । गोअरमभिग्गहजुअं खमणं छम्मासियं च कासी य ।
पंचदिवसेहिं ऊणं अव्वहिओ वच्छनयरीए ॥ ४ ॥ दसदो अकिरणमहप्पा छाइमुणी एगराइअं पडिमा ।
अट्ठमभत्तेण जई इक्किकं चरमरयणीयं । । ५ ।। दो चेव य छट्ट सए अउणातीसे उवासिओ भयवं ।
कायाइ निच्चभत्तं चउत्थ भत्तं च से आसि ।। ६ ।। तिणिस दिवसाणं अउणा पण्णे उ पारणा कालो ।
उक्कडुअरिसिब्भाणं पि अ पडिमाणं सए बहुए । 1७ ।। सव्वंपि तवोकम्मं अप्पाणयं आसि वीरनाहस्स ।
पवज्जाए दिवसे पढ़मे खित्तंमि सव्वमिगं । । ८ । । बारस चेव य वासा मासा छच्चेव अद्धमासो अ । वीरस्स भगवओ एसो छउमत्थ परियाओ ।। ६ ।। "
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श्री महावीरस्वामी प्रभु ने छद्मस्थावस्था में साढ़े बारह वर्ष तपस्या की। उन्होंने जो तपस्या की वह इस प्रकार है
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नौ चतुर्मासी तप, छः दो मासी तप, बारह मासक्षमण, बहत्तर पक्षक्षमण, एक छः मासी तप, दो त्रैमासिक तप, दो ढाईमासी तप, दो डेढ़ मासी तप, दो दिन की भद्र- प्रतिमा, चार दिन की महाभद्र - प्रतिमा, दस दिन की सर्वतोभद्र-प्रतिमा, वत्सनगरी में गोचरी के अभिग्रहपूर्वक पाँच दिन कम किया गया छः मासी तप, बारह अष्टमभक्त तथा उन बारह अष्टमभक्तों की अन्तिम रात्रि में ध्यानपूर्वक प्रतिमा का वहन एवं २२६ षष्ठभक्त, अर्थात् निरन्तर दो-दो उपवास किए।
भगवान ने कभी नित्य आहार किया, तो कभी उपवास भी किए। साढ़े बारह वर्ष एवं पन्द्रह दिन के इस काल में भगवान ने ३४६ दिन पारण, अर्थात् भोजन ग्रहण किया । इसी काल में भगवान ने अनेक बार उत्कट प्रतिमाएँ भी धारण की। भगवान का सम्पूर्ण
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