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आचारदिनकर (खण्ड- ४ )
२०. संलेखना-तप
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अब संलेखना - तप की विधि बताते हैं
प्रथम चार वर्ष विचित्र तप करे । तत्पश्चात् दूसरे चार वर्ष एकान्तर नीवि से पूर्ववत् उपवास करे। इसके बाद दो वर्ष तक एकान्तर नीवि से आयंबिल करे। इसके बाद छः मास तक उपवास तथा छट्ठ परिमित भोजन वाले आयंबिल के अंतर से करे। इसके बाद छः मास तक आयंबिल के अंतर से चार-चार उपवास करे । इसके पश्चात् एक वर्ष तक आयंबिल करे । इस प्रकार बारह वर्ष में यह तप सम्पूर्ण होता है।
किए गए सभी भावों का सम्यक् प्रकार से लेखन ( स्मरण ) करके उन पापों का तप द्वारा विशोधन करना संलेखना - तप कहलाता है । इस तप के करने से सद्गति की प्राप्ति होती है । यह तप साधुओं एवं श्रावकों के करने योग्य आगाढ़ - तप है । इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है
संलेखना - तप
आगाढ़ इस तप में उपर्यक्त कहे गए अनुसार १२ वर्ष वर्ष ४ यावत् उ. २/ए. /उ.३/ए./उ.४/ए/उ.५/ए./उ.६/ए./उ.१५/ए. /उ.३०/ए. / पूरण
प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
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वर्ष ४ यावत् उ.२/नी. /उ.३/नी/उ.४/नी. /उ.५/नी. /उ.६/नी. /उ. १५/नी. /उ.३०/नी.
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वर्ष २ यावत् नी /आं./नी./आं. / इत्यादि पूरण
मास ६ यावत् उ.१/आं./उ.२/आं./उ.१/आं. / पूरणीया
मास ६ यावत् उ.४/आं./उ.४/आं./पूरणीया
वर्ष १ यावत् / आयम्बिल करे
२१. सर्वसंख्या श्री महावीर - तप
अब सर्वसंख्या श्री महावीर - तप की विधि बताते हैं । महावीर स्वामी द्वारा यह तप किया जाने के कारण इस तप को महावीर-तप कहते हैं, वह इस प्रकार है -
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" नवकिर चाउम्मासे छक्किर दो मासिए उवासीअ । बारस य मासिआई बावत्तरिअद्धमासाई । । १ ।।
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