________________
आचारदिनकर (खण्ड-४)
294 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
निर्वाणतप, अनागाढ़, दिन - ६६ | ऋ. अ. सं. | अ. सु. प. सु. चं. सु. शी. | श्रे. | वा. उ. ए. उ. ए. उ. ए. उ. ए. उ. ए. उ. ए. उ.ए. उ.ए. उ.ए. उ. ए. उ. ए. उ. ए. ६.१|३०|१|३०|१|३०|१|३०/१३०/१३० १३०/१३०/१/३०/१|३०|१|३०|१|
वि. | अं. | ध. शा. | कु. अ. म. म. न. ने. पा. वर्धमान उ. ए. उ. ए. उ. ए. उ. ए. उ. ए. उ. ए. उ.ए. उ. ए. उ. ए. उ. ए. उ.ए. उ. ए. રૂ. ૧૨૦૦ રૂ૩૦ ૦૩૦ ૦ ૩ ૧ રૂ| ૧ર૦૦ રૂ૦૦ રૂ.
दीक्षा, ज्ञान और निर्वाण-तप का कल्याणक-तप में समावेश होता है, परन्तु उसमें इतना विशेष है कि - कल्याणक का तप आगाढ़ होने से कल्याणक के दिनों का स्पर्श करके ही किया जाता है और ये तीन तप अनागाढ़ होने से तप की संख्या से, अर्थात् यथा अवसर किए जाते हैं। एक ही दिन च्यवन और जन्म-कल्याणक हो, तो उपवास से कल्याणक-तप करने वाला एक कल्याणक की आराधना कर दूसरे कल्याणक की आराधना दूसरे वर्ष उस दिन करता है और एकासन, अथवा आयंबिल से कल्याणक-तप करने वाला एक तीर्थंकर के या दो तीर्थकर के कल्याणक की आराधना कर बाकी रही आराधना दूसरे वर्ष उसी दिन करता है। इसके लिए कोई नियम नही है कि एक साथ ही वह इन दोनों कल्याणक की आराधना करे। दीक्षा, ज्ञान और निर्वाण - इन तीन कल्याणकों में भी तीन दिन की आराधना करके ही पारणा करते हैं। एक दिन की आराधना करके यह तप नहीं कर सकते हैं। एकान्तर उपवास के द्वारा यह तप करे। १६. ऊनोदरिका-तप -
अब ऊनोदरिका-तप की विधि बताते हैं। यह ऊनोदरिका-तप पाँच प्रकार से किया जाता है। आगम में यह तप पाँच प्रकार का बताया गया है - अप्पाहारा अवड्डा दुभाग पत्ता तहेव देसूणा।
अट्ठ दुवालस सोलस चउवीस तहिक्कतीसा या।। नियत प्रमाण से कम भोजन करने के कारण, अर्थात् उदर में जितनी भूख हो, उससे कम भोजन करने को ऊनोदरिका-तप कहते
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org