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आचारदिनकर (खण्ड-४)
248 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि कायोत्सर्ग करे। तत्पश्चात् कायोत्सर्ग पूर्ण करके "कालोयगोयरचरिया." गाथा बोले। तत्पश्चात् दिवसचरिम-प्रत्याख्यान करे। उसके बाद प्रतिक्रमण प्रारम्भ करे। सर्वप्रथम विधिपूर्वक उत्कृष्ट चैत्यवंदन करे। तत्पश्चात् "इच्छाकारेण संदिसह भगवन देवसियं पडिक्कमणं ठाउं ? सव्वस्सवि देवसिय."- इस प्रकार बोले। उसके बाद “करेमि भंते" का पाठ, “इच्छामिठामि काउसग्गं जो मे देवसिओ., तस्सउत्तरी." का पाठ बोलकर कायोत्सर्ग करे। यति (साधु) कायोत्सर्ग में “सयणासणन्नपाणे. " गाथा का चिन्तन करे तथा श्रावक “नाणंमि दंसणंमिय."- इन आठ गाथाओ का चिन्तन करें। कायोत्सर्ग पूर्ण करके चतुर्विंशतिस्तव बोले। उसके बाद मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करके द्वादशावर्त्तवंदन करे। तत्पश्चात् "इच्छाकारेण संदिसह भगवन देवसियं आलोएमि." - यह पाठ बोलकर साधु यथाक्रम से "ठाणेकमणे." सूत्र बोले। उस समय श्रावक “सव्वस्सवि देवसिय." गाथा बोले। तत्पश्चात् श्रावक वंदित्तुसूत्र एवं साधु श्रमणसूत्र बोलें। उसके बाद वन्दन करे। तत्पश्चात् "इच्छाकारेण संदिसह भगवन देवसियं खामेउ. इच्छं खामेमि"- इस प्रकार बोलकर क्षमापना करे। पुनः द्वादशावर्त्तवन्दन करे तथा श्रावक "आयरिय उवज्झाए." सूत्र बोले। गच्छ-परम्परा में भेद होने से कुछ गच्छों में साधु भी यह सूत्र बोलते हैं। तत्पश्चात् “करेमि भंते ' एवं "इच्छामि ठामि." का पाठ बोलकर "तस्सउत्तरी." एवं अन्नत्थसूत्र बोलकर कायोत्सर्ग करे। कायोत्सर्ग में दो बार चतुर्विंशतिस्तव का चिन्तन करे। कायोत्सर्ग पूर्ण होने पर प्रकट रूप से चतुर्विंशतिस्तव बोले। तत्पश्चात् सर्व चैत्यस्तव बोलकर कायोत्सर्ग करे। कायोत्सर्ग में चतुर्विंशतिस्तव का चिन्तन करे। कायोत्सर्ग पूर्ण होने पर श्रुतस्तव बोलकर पुनः कायोत्सर्ग करे। कायोत्सर्ग में चतुर्विंशतिस्तव का चिन्तन करे। कायोत्सर्ग पूर्ण करके सिद्धस्तवं बोले। उसके बाद श्रुतदेवता का कायोत्सर्ग करे। कायोत्सर्ग में नमस्कारमंत्र का चिन्तन करे। कायोत्सर्ग पूर्ण करके श्रुतदेवता की स्तुति बोले। इसी प्रकार क्षेत्रदेवता का कायोत्सर्ग करके स्तुति बोले। यहाँ पर गच्छ-परम्परा में भेद होने से कुछ लोग शासन-देवता वैरोट्या आदि का कायोत्सर्ग एवं स्तुति करते हैं। तत्पश्चात् नमस्कारमंत्र बोलकर मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे
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