Book Title: Prayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Author(s): Mokshratnashreejiji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 302
________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) दिवसचरिम- प्रत्याख्यान साइमं दिवसचरिमं पच्चक्खामि चउव्विहं पि आहारं असणं पाणं अन्नत्थऽणाभोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं देसावगासियं भोगं परिभोगं पच्चक्खामि अन्नत्थऽणाभोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरइ ।" यह प्रत्याख्यान संध्या के समय सम्पूर्ण रात्रि के लिए किया जाता है । इस प्रकार दस प्रकार के प्रत्याख्यानों की विधि बताई गई है। नमस्कारसहित द्विधासन, पौरुषी, एकासन, निर्विकृति, सार्द्धप्रहर, आचाम्ल, मध्याहून, अपराहून एवं उपवास इस प्रकार उपर्युक्त प्रत्याख्यानों में सामूहिक रूप से दसों प्रत्याख्यानों की विधि बताई गई है । खाइमं 258 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि - Jain Education International - एकासन, एकस्थान, आचाम्ल, एकसिक्थ, मितग्रास, निर्विकृति, दत्ति तथा उपोषण (उपवास) - इन सबके प्रत्याख्यान एक साथ दे । नमस्कारसहित, पौरुषी आदि, अभिग्रह, पान एवं भोगोपभोग आदि के प्रत्याख्यानों का कथन एक साथ करे । एकसिक्थ, दत्ति, आयम्बिल एवं निर्विकृति आदि में एक स्थान पर बैठकर एक बार ही आहार ग्रहण किया जाता है। ग्रंथिसहित या मुष्टिसहित एकासन एवं बियासन के प्रत्याख्यान की विधि “गंठिसहियं मुट्ठिसहियं वा पच्चक्खामि चउव्विहंपि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थऽणाभोगेणं सहसागारेणं पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं विगइसेसियाओ पच्चक्खामि अन्नत्थ ऽणाभोगेणं सहसागारेणं लेवालेवेणं गिहत्थसंसद्वेण उक्खित्तविवेगेणं पडुच्चमक्खिएणं पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं बियासणं एकासणं पच्चक्खामि दुविहं पि तिविहं पि आहारं असणं खाइमं साइमं अन्नत्थऽणाभोगेणं सहसागारेणं सागारियागारेणं आउंटणपसारेणं गुरुअब्भुट्ठाणेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरइ बिआसणा एकासणं पच्चक्खाणं गंठिसहियं मुट्ठिसहियं वा पच्चक्खाहि चउव्विहं पि आहारं असणं पाणं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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