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प्रकार होती है आली होती है। शेषकार एक कषायजय दिन
आचारदिनकर (खण्ड-४) 273 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
एक भक्तं निविकृति सजलानशने तथा
कषाय जय एकस्मिन् कषायेऽन्येष्वपीदृशं ।।१।। ६. कषायजय-तप - अब कषायजय-तप की विधि बताते हैं -
प्रथम दिन एकासन, दूसरे दिन नीवि, तीसरे दिन आयंबिल और चतुर्थे दिन उपवास - इस प्रकार एक कषायजय के लिए चार दिन की एक ओली होती है। शेष तीन कषायों की ओली भी इसी प्रकार होती है - इस प्रकार सोलह दिन में यह तप पूर्ण होता है।
इस तपयंत्र का न्यास इस प्रकार है - क्रोध, माया, मान एवं
कषायजय-तप, कुल दिन-१६ लोभरूपी कषाय के जय के लिए जो
क्रोध | ए.१ | नी.१/ आं.१/ उप.१ तप किया जाता है, उसे कषायजय-तप
| मान | ए.१ | नी.१ ७.१ | उप.१ | कहते हैं। इसमें उद्यापन की पूजा में
माया | ए.१ | नी.१ आं.१ | उप.१ | सर्व जाति के फल, तथा षट्विकृतियों
लोभ | ए.१ | नी.१ | आं.१, उप.१ | से युक्त पकवान सोलह-सोलह की संख्या में परमात्मा की प्रतिमा के आगे चढाएं तथा उसी परिमाण में मुनियों को भी दान दे। यह तप करने से सर्व कषायों का नाश होता है। यह तप साधु एवं श्रावक - दोनों के करने योग्य आगाढ़ तप है। ७. योगशुद्धि-तप - अब योगशुद्धि-तप की विधि बताते हैं -
"योगे प्रत्येकमरसमाचाम्लं वाप्युपोषितं। एवं नवदिनैर्योग शुद्धिः संपूर्यते ततः।।"
यह तप मन, वचन और काया के योग को शुद्ध करने वाला होने से योगशुद्धि- तप कहलाता है। इसमें मनोयोग के लिए पहले दिन नीवि, दूसरे दिन आयंबिल एवं तीसरे दिन उपवास किया जाता है। इसी प्रकार वचन एवं काया के योग के लिए भी तीन-तीन दिन यह तप किया जाता है - इस प्रकार नौ दिन में यह तप पूर्ण होता है।
इसके यंत्र का न्यास इस प्रकार हैउद्यापन में जिनेश्वर के आगे छहों
| योगशुद्धि-तप, कुल दिन-६ | विगयों से युक्त पदार्थ चढ़ाए तथा साधुओं
मन | नी.१ आ.१ | उप.१
वचन | नी.१ | आं.१ | उप.१ को भी वही वस्तुएँ दान दे। यह तप करने
काया | नी.१ | आं.१ | उप.१
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