________________
आचारदिनकर (खण्ड-४)
209 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि (८) चरिम-प्रत्याख्यान - दिन के अन्त में या भव के अन्त में किया जाने वाला प्रत्याख्यान क्रमशः दिवसचरिम व भवचरिम-प्रत्याख्यान कहलाता हैं।
(E) अभिग्रह - ग्रन्थिमुष्टि होने तक जो प्रत्याख्यान होता है, उसे अभिग्रह कहते हैं। ग्रन्थिसहित प्रत्याख्यान में कपड़े में गाँठ बांधकर प्रत्याख्यान लिया जाता है, अर्थात् जब तक गाँठ बंधी हुई होती है, तब तक वह प्रत्याख्यान रहता है और जैसे ही गाँठ खोल देते है, तो अभिग्रहीत प्रत्याख्यान पूर्ण हो जाता हैं। इसी प्रकार मुष्टिसहित प्रत्याख्यान के सम्बन्ध में भी जानना चाहिए। मुष्टिसहित प्रत्याख्यान में जब तक मुष्टि खुली होती हैं, तब तक प्रत्याख्यान होते हैं तथा मुष्टि बाँधने पर प्रत्याख्यान पूर्ण हो जाता है। सामान्यतः यह प्रत्याख्यान जिन्हें प्रत्याख्यान ग्रहण करने के सूत्र नहीं आते, उनके द्वारा लिया जाता है।
(१०) निर्विकृति - विकृति का सर्वथा त्याग करना या विगई की संख्या का परिमाण करना निर्विकृति कहलाता है।
अब इनके अपवादों (आगारों) की संख्या बताते हैं -
नवकारसी में दो अपवाद (आगार) होते हैं, पौरुषी में छ: आगार होते हैं। पूर्वार्द्ध (पुरिमड्ढ) में सात आगार होते हैं। एकासने में आठ अपवाद होते हैं। एकस्थान में सात अपवाद होते हैं। आयम्बिल में आठ आगार होते हैं। अभक्तार्थ में पाँच अपवाद होते हैं तथा पानक-प्रत्याख्यान में छ: आगार होते हैं। चरिम-प्रत्याख्यान में चार आगार होते हैं। अभिग्रह के चार या पाँच अपवाद होते हैं। नीवि में आठ या नौ आगार होते हैं।
नमस्कारसहित सूत्र -
"उग्गए सूरे नमोक्कारसहियं पच्चक्खामि चउव्विहं पि आहारं-असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं वोसिरामि।" भावार्थ -
सूर्योदय होने पर नमस्कारसहित दो घड़ी दिन चढ़े तक का मैं प्रत्याख्यान ग्रहण करता हूँ और अशन, पान, खादिम और स्वादिम -
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org