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आचारदिनकर (खण्ड-४) 211 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
यवादि जल का तात्पर्य-यव, तिल, तुष आदि के जल से है। सुरादि का तात्पर्य है - काष्ठ, चूर्ण (आटा), फल का रस, पुष्प का रस, अर्थात् शहद द्वारा बनाए गए पेय पदार्थ, जो अपुष्टिकारक एवं अतृप्तिकारक होते हैं। सर्वप्रकार के अप्काय बर्फ, ओले, शुद्ध जल आदि, ककड़ी आदि का जल - जो पुष्टि करने वाला नहीं है - ऐसे ईक्षुरस को छोड़कर शेष सभी पुष्प और फलों का रस।
___खादिम - मुंजे हुए गेहूँ, चना आदि, दाँतों के लिए हितकारी गोंद, खांड, गन्ना आदि; खजूर, नारियल, द्राक्ष आदि; ककड़ी, आम, फणस आदि फल - ये सब खादिम हैं।
भक्तोस - भुना हुआ धान, जिसका आहार करने से भोजन के समान ही तृप्ति होती है। दंत - दाँतों को व्यायाम देने वाले वृक्षोत्पादित सभी प्रकार के आराद्ध और शाक। दंत शब्द का अर्थ देशविशेष में प्रसिद्ध गुड़, शहद एवं विकृति डालकर बनाया हुआ द्रव्यविशेष भी है, जिसे चबाने से दाँतों का व्यायाम हो जाता है। खजूर, नारियल, द्राक्षा आदि पदार्थों का अर्थ जगप्रसिद्ध है। यहाँ आदि शब्द का ग्रहण बादाम आदि के लिए किया गया है। ककड़ी आदि शब्द द्वारा सुस्वादु एवं अबलकारी बिम्बीफल आदि फलों का ग्रहण किया गया है। आम आदि शब्द द्वारा नारंगी, जम्बीर, बिजौरा आदि षड्रस वाले फलों का ग्रहण किया गया है। पनस शब्द द्वारा कटहल आदि मधुर रस वाले फलों का ग्रहण किया गया है - इस प्रकार खादिम पदार्थ अनेक प्रकार के होते हैं। सुख एवं स्वाद के लिए खाये जाने वाले पदार्थों को खादिम कहते हैं।
स्वादिम - दतौन (दतुवन), पान, सुपारी आदि अनेक प्रकार के मुखवास, तुलसी के पत्ते, अजवाइन आदि, मधुयष्टी, पीपल, सौंठ आदि अनेक प्रकार के स्वादिम हैं।
दतौन दाँत को स्वच्छ बनाने वाला - इसकी यह व्याख्या प्रसिद्ध है, अतः यहाँ पृथक् से व्याख्या नहीं की गई है। ताम्बूल शब्द द्वारा यहाँ पाँच प्रकार के सुगंधित पदार्थों का ग्रहण किया गया है। तुलसी शब्द द्वारा यहाँ सभी प्रकार के सुगन्धित एवं कसैले द्रुमपत्रों का ग्रहण किया गया है। कुहेटक शब्द द्वारा यहाँ भर्भर्या (भभोरी
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