________________
218
भवचरिम - आयु का अन्तिम भाग ।
आचारदिनकर (खण्ड- ४ )
अभिग्रहसूत्र
ग्रन्थिसहित, मुष्टिसहित, उच्छ्वाससहित अंगुष्ठसहित आदि अभिग्रह-प्रत्याख्यान में चार या पाँच अपवाद ( आकार ) होते हैं । अभिग्रहसूत्र इस प्रकार है
खाइमं
“गंठिसहियं पच्चक्खामि चउव्विहं पि आहारं असणं पाणं साइमं अन्नत्थऽणाभोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि अथवा अन्नत्थऽणाभोगेणं सहसागारेणं पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि ।" भावार्थ -
मैं ग्रंथिसहित व्रत का ग्रहण करता हूँ, अतएव अशन, पान, खादिम, स्वादिम - चारों ही प्रकार के आहार का त्याग करता हूँ । अनाभोग, सहसाकार, महत्तराकार एवं सर्वसमाधिप्रत्ययाकार इन चार आकारों, अथवा पारिष्ठापनिकाकार सहित पाँच अपवादों ( आकारों) के सिवाय अभिग्रहपूर्ति तक चारों प्रकार के आहार का त्याग करता हूँ।
निर्विकृतिसूत्र
-
प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
Jain Education International
निर्विकृतिसूत्र में आठ या नौ अपवाद (आकार) होते हैं । निर्विकृति का सूत्र इस प्रकार है
“निविगइयं पच्चक्खामि अन्नत्थऽणाभोगेणं सहसागारेणं, लेवालेवेणं गिहत्थसंसिठेणं उक्खित्तविविगेणं पडुच्चमक्खिएणं पारिट्ठावनियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि ।“ भावार्थ -
मैं विकृतियों का प्रत्याख्यान करता हूँ । अनाभोग, सहसागार, लेपालेप, गृहस्थसंसृष्ट, उत्क्षिप्तविवेक, प्रतीत्यम्रक्षिक, पारिष्ठापनिक, महत्तराकार और सर्वसमाधिप्रत्ययाकार इन आकारों, अथवा प्रतीत्यम्रक्षिक को छोड़कर शेष आठ अपवादों (आकारों) के सिवाय विकृति का परित्याग करता हूँ ।
विशिष्टार्थ - पडुच्चमक्खिणं - भोजन बनाते समय जिन रोटी आदि पर सिर्फ अंगुली से घी आदि चुपड़ा गया हो, ऐसी वस्तुओं को ग्रहण
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
-
-