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आचारदिनकर (खण्ड-४)
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प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
या मार्ग भूल जाने से पहले गुणव्रत में जो अतिचार लगे हों, उनकी
मैं निन्दा करता हूँ।
नोट - पहले गुणव्रत में आठों दिशाओं में जाने आने के परिमाण की प्रतिज्ञा होती है।
भावार्थ
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( सातवें व्रत के अतिचारों की आलोचना )
“मज्जम्मि अ मंसम्मि अ, पुप्फे अ फले अ गंध मल्ले अ । उवभोगे-परिभोगे बीअम्मि गुणव्वए निंदे || २० || सच्चित्ते पडिबद्धे, अपोल दुप्पोलियं च आहारे ।
तुच्छोसहि भक्खणया, पडिक्कमे देवसिअं सव्वं । । २१।।“
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सातवाँ व्रत भोजन और कर्म दो तरह से होता है । इन दोनों गाथाओं में भोजन सम्बन्धी अतिचारों की आलोचना की गई है। मदिरा, मांस आदि वस्तुओं का सेवन करने से तथा पुष्प, फल, सुगंधित द्रव्यादि पदार्थों का परिमाण से ज्यादा भोग - उपभोग करने से जो अतिचार लगे हैं, उनकी मैं निंदा करता हूँ । सावद्य आहार का त्याग करने वाले को जो अतिचार लगते हैं, वे अतिचार इस प्रकार हैं १. निश्चित किए हुए परिमाण से अधिक सचित्त आहार के भक्षण में २. सचित्त से लगी हुई अचित्त वस्तु, जैसे बीजयुक्त बेर, आम आदि के भक्षण में ३. अपक्व आहार आदि के भक्षण में, दुपक्व आहार तथा आचार आदि के भक्षण में एवं ४. तुच्छौषधि वनस्पतियों के भक्षण में दिवस सम्बन्धी जो अतिचार लगे हों, उन सबसे मैं निवृत्त होता हूँ ।
१-५.
इन
यहाँ निम्न बाईस वस्तुओं का वर्जन किया गया है पाँच उदुम्बर, अर्थात् उदुम्बर, वट, प्लक्ष, उम्बर और पीपल पाँचो के फल । ६-६. चार महाविगई १०. बर्फ ११. विष १२. ओले १३. सर्व प्रकार की मिट्टी १४. रात्रिभोजन १५. बहुबीज १६. अनंतकाय १७. अचार १८. घोलवड़ा १६. बैंगन २०. अनजाने फल-फूल २१. तुच्छफल २२. चलित रस ।
आगे की निम्न दो गाथाओं में कर्म के अतिचारभूत पन्द्रह कर्मादानों का त्याग करने का निर्देश दिया गया है -
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